[गोविंद गोयल] मुरदों के शहर की कानून व्यवस्था जिंदा कैसे हो सकती है! जाहिर है, मुरदों के शहर की कानून व्यवस्था भी मुरदा ही होगी। जैसा देश, वैसा भेष। एसपी साहब गुस्सा हो जाएंगे, ये सोच कर ना लिखूँ तो फिर ये कोई पत्रकारिता नहीं। यह चिंतन कर इस विषय से मुंह मोड़ लूँ कि मुझे क्या, ये भी ठीक नहीं लगता। इसलिए सरल शब्दों मेँ सीधी सी बात यही है कि हमारे मुरदों के शहर की कानून व्यवस्था भी मुरदा हो चुकी है। ये मुरदा कब से हुई, कहना मुश्किल है। क्योंकि कोई सिस्टम, व्यक्ति, जीव एक दम से मुरदा नहीं होता।

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वह धीरे धीरे मुरदापन की ओर बढ़ता है। और एक दिन मुरदा हो जाता है। ये मुरदा है, ये सच है। सच के सिवा कुछ नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस हर घड़ी, हर जगह नहीं पहुँच सकती। ये भी सही है कि पुलिस के पास कोई जादू की छड़ी नहीं, जिसे घुमा कर ये ज्ञात हो सके कि कब, कहां अपराध होने वाला है। या कौनसा अपराध करके, अपराधी कहां छिपे हुए हैं। पुलिस हर अपराध को होने से नहीं रोक सकती। घर से गए किसी व्यक्ति को मिनटों मेँ नई खोज सकती। हां, इसके बावजूद पुलिस बहुत कुछ कर सकती है।

और अपनी पर आए तो सब कुछ करके भी दिखा दे। किन्तु ऐसा कुछ इस शहर मेँ नहीं हो रहा। बेशक पुलिस तमाम अपराधों को नहीं रोक सकती। सभी अपराधियों को नहीं पकड़ सकती। घर से गए, लापता हुए व्यक्तियों, बच्चों को मिनटों मेँ नहीं खोज सकती, परंतु वह अपराधियों मेँ अपना भय तो पैदा कर ही सकती है। पुलिस इतना तो कर ही सकती है कि अपराधी इस क्षेत्र मेँ कोई वारदात करने से पहले सौ बार सोचें! वे डरे सहमें रहें जो आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। वे ऐसा वैसा कदम बढ़ाने से डरें, जो असामाजिक सोच के हैं। माना पुलिस मेँ नफऱी की तंगी है। फिर भी बीट कांस्टेबल हैं। खुफिया तंत्र हैं। सीएलजी मेम्बर हैं। सिपाही तक का नेटवर्क है। फिर भी तीन पुली पर दर्जनों व्यक्ति हथियारों के साथ गाडिय़ों मेँ आते हैं। लड़ते हैं। झगड़ते हैं। फायरिंग करते हैं। कानून व्यवस्था को सरे राह चुनौती देते हैं। इसके अधिक शर्मनाक और हैरानी की बात क्या हो सकती है। तीन पुली कोई सुनसान क्षेत्र नहीं है कि चलो करो लड़ाई और चले जाओ अपने अपने घर। तीन पुली चहल पहल वाला क्षेत्र है। ऐसे मामले मेँ ना जाने कौन कौन, किस हथियार का शिकार हो अपने प्राण गंवा बैठे। तीन पुली पर ट्रैफिक का नाका लगता है।

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पुलिस की गाड़ी भी ना जाने कितनी बार खड़ी देखी है। फिर भी दिन दिहाड़े ये स्थिति! बड़ा सवाल जिम्मेदार कौन? सबसे पहले पुलिस और कौन! सीधे सीधे वही जि़म्मेदारी है कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए। फिर वो नेता जो शहर के लिए अपना जीवन लगा देने की बात करते हैं। शहर की जनता को तो कुछ कहना ही बेकार है, क्योंकि वह तो वोट देकर अपनी सभी जि़म्मेदारी पार्षद, विधायक, एमपी, सरपंच, पंच….आदि जन प्रतिनिधियों पर डाल चादर तान के सो जाती है। ऐसे जैसे मुरदा पड़ा रहता है। मेडिकल कॉलेज के निर्माण की घोषणा मात्र से श्रेय लेने की दौड़ मेँ एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करने वाले नेता/ जन प्रतिनिधि इस मामले मेँ पता नहीं क्यों खामोश हैं। किसी समय बड़े बड़े व्यापारिक संगठन भी ऐसे मुद्दों को उठाया करते थे।

अब वे भी मौन रहते हैं। जब नेता ही चुप हैं तो ये बुरे क्यों बनें। आखिर ये भी तो इसी शहर का हिस्सा हैं। असल बात ये कि कोई भी कानून व्यवस्था पर अंगुली उठा पुलिस की नाराजगी को आमंत्रित नहीं करना चाहता। इसलिए सभी किसी ना किसी बहाने चुप हैं। इस मुद्दे से बच कर निकल जाते हैं। परंतु ये स्थिति ठीक नहीं है। शहर की मुरदा हो चुकी कानून व्यवस्था को जिंदा करने के लिए सभी को थोड़ा थोड़ा सहयोग करना पड़ेगा। सही बात पर पुलिस का सहयोग करना, साथ देना और गलत बात पर आक्रोश जताना कोई गलत नहीं है। बाकी पुलिस जाने और पुलिस सिस्टम की सोच।

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