‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। कई संप्रदायों में कुवांरी कन्याएं भी अच्छे पति की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। यहां जानें, कैसे करें यह व्रत और क्या है इस व्रत की पौराणिक कथा…
महत्व करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी एक ही दिन होता है. संकष्?टी पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उनके लिए उपवास रखा जाता है. करवा चौथ के दिन मां पारवती की पूजा करने से अखंड सौभाग्?य का वरदान प्राप्?त होता है. मां के साथ-साथ उनके दोनों पुत्र कार्तिक और गणेश जी कि भी पूजा की जाती है. वैसे इसे करक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस पूजा में पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य सुहागन महिला को दान में भी दिया जाता है.
करवाचौथ व्रत की उत्तम विधि आइए जानें, करवाचौथ के व्रत और पूजन की उत्तम विधि के बारे जिसे करने से आपको इस व्रत का 100 गुना फल मिलेगा…
– सूर्योदय से पहले स्नान कर के व्रत रखने का संकल्पत लें. फिर मिठाई, फल, सेंवई और पूड़ी वगैरह ग्रहण करके व्रत शुरू करें. फिर संपूर्ण शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें. गणेश जी को पीले फूलों की माला , लड्डू और केले चढ़ाएं. भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें. श्री कृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं. उनके सामने मोगरा या चन्दन की अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं. मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं. कर्वे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें. इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार जरूर करें, इससे सौंदर्य बढ़ता है. इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए. कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए. फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आशीर्वाद लें . पति को प्रसाद देकर भोजन कराएं और बाद में खुद भी भोजन करें.

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व्रत विधि –करवा चौथ का व्रत निर्जला व्रत होता है यानी पूरे दिन न कुछ खाते हैं और न ही पानी पीते हैं। शाम के समय भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा होती है। साथ ही करवा माता का पूजन किया जाता है। शाम को चांद देखकर अर्घ्य देते हैं और पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलते हैं।
शगुन-इस दिन सुहाग की सभी चीजें घर की बड़ी महिलाओं को पूजा के बाद देते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
भोजन इस दिन भोजन में पूड़ी-सब्जी, खीर, फल और मिठाई से भगवान को भोग लगाकर पति की दीर्घायु की कामना की जाती है। बाद में इस भोजन को सास या घर की किसी बड़ी महिला को देते हैं। ऐसा संभव न हो सके तो इस भोजन को मंदिर में दे देना चाहिए।
क्या न करें
– आज के दिन पूरी तरह संतुष्ट और खुश रहें। किसी पर क्रोध न करें। किसी का दिल न दुखाएं। बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें। सफेद चीजें दान में न दें। नुकीली और काटने वाली चीजें जैसे, कैंची, चाकू आदि के प्रयोग से बचें।
कथा
एक समय की बात है, करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे बसे गांव में रहती थीं। एक दिन इनके पति नदी में स्नान करने गए। स्नान करते समय नदी में एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया गहरे पानी में ले जाने लगा। मृत्यु को करीब देखकर करवा माता के पति ने करवा को नाम लेकर पुकारना शुरू किया। पति की आवाज सुनकर करवा माता नदी तट पर पहुंची और पति को मृत्यु के मुख में देखकर क्रोधित हो गईं। करवा माता ने एक कच्चे धागे से मगरमच्छ को बांध दिया और कहा कि अगर मेरा पतिव्रत धर्म सच्चा है तो मगरमच्छ मेरे पति को लेकर गहरे जल में नहीं ले जा सके। इसके बाद यमराज वहां उपस्थित हुए। उन्होंने करवा से कहा कि तुम मगरमच्छ को मुक्त कर दो। इस पर करवा ने कहा कि मगरमच्छ ने मेरे पति को मारने का प्रयत्न किया है इसलिए इसे मृत्युदंड दीजिए और मेरे पति की रक्षा कीजिए। तब यमराज ने कहा कि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा ने यमराज से अपने पति के प्राण न हरने की विनय करते हुए कहा कि मैं अपने सतीत्व के बल पर आपको अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दूंगी, आपको मेरी विनय सुननी ही होगी। इस पर यमराज ने कहा कि तुम पतिव्रता स्त्री हो और मैं तुम्हारे सतीत्व से प्रभावित हूं। ऐसा कहकर यमराज ने मगरमच्छ के प्राण ले लिए और करवा के पति को दीर्घायु का वरदान मिला। इस बार करवा चौथे रविवार 8 अक्टूबर को है. अपने पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने चंद्रमा की पूजा करती हैं. यह नीरजल व्रत होता है, जिसमें चांद देखने और पूजने के बाद ही अन्न व जल ग्रहण किया जाता है.