Madhu Acharya
Madhu Acharya
मधु आचार्य का सम्मान शब्द की सत्ता का सम्मान : डॉ.चारण

बीकानेर । प्रख्यात नाटककार तथा आलोचक डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा है कि जो समाज शब्द का सम्मान करना जानता है, वह समाज ही वास्तव में संवेदनशील है। आज के दौर में जब सबसे बड़ा हमला शब्द और भाषा पर हो रहा है, एक साहित्यकार के सम्मान में सारे शहर का उमडऩा आशान्वित करता है लेकिन चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। धरणीधर खेल मैदान में वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य के नागरिक अभिनंदन समारोह में डॉ.चारण ने यह कहा। यह कार्यक्रम मधु आचार्य को हाल ही में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से सर्वोच्च राजस्थानी भाषा सम्मान दिए जाने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। डॉ.चारण ने इस मौके पर कहा कि यह सम्मान वस्तुत: शब्द की सत्ता का सम्मान है।
शब्द है जो व्यक्ति का अस्तित्व है और शब्द छीन लिए जाएं तो फिर कुछ नहीं है। इस मौके पर उन्होंने शब्द के दुरुपयोग पर भी चिंता जताते हुए कहा कि तेजी से बढ़ती तकनीक ने भाषा और शब्द पर हमला किया है। हमारे पास हमारी भाषा ही नहीं रही है। उन्होंने राजस्थानी भाषा की मान्यता का सवाल उठाते हुए कहा कि अगर किसी को लगता है कि इससे साहित्यकारों का भला होना है, तो यह गलत है। अगर भाषा को मान्यता मिल गई तो आपके बच्चों को भला होगा। उन्हें सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर मिलेगा।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने इस मौके पर मधु आचार्य के सृजन-सरोकारों की चर्चा करते हुए कहा कि उनका लेखन सहज है लेकिन अंदर तक उतरने वाला है। उन्होंने पुरस्कृत कृति ‘गवाड़’ पर चर्चा करते हुए कहा कि तेजी से बदलते समय में गांव-गवाड़ में भी ेजी से बदलाव आया है, जिसे मधुजी ने समझा है। कार्यक्रम के अध्यक्ष रामकिसन आचार्य ने इस मौके पर बीकानेर की सुदीर्घ परंपरा का जिक्र करते हुए कहा कि साहित्यकार-कलाकारों का इस शहर ने सदैव सम्मान किया है और आगे भी करता रहेगा। साहित्यकारों को चाहिए कि वे और बेहतर लिखे और इस शहर को सम्मान दिलावें।
राजस्थान सरकार में संसदीय सचिव डॉ.विश्वनाथ ने कहा कि साहित्यकार समाज को दिशा देता है और अच्छे-बुरे का ज्ञान करवाता है। जिला प्रमुख सुशीला सींवर ने कहा कि एक लेखक के रूप में मधुजी जहां संवदनाओं को जगाने वाले साहित्यकार हैं तो दूसरी ओर पत्रकारिता के माध्यम से समाज को जगाए रखने वाले पत्रकार हैं। बीकानेर विधानसभा (पश्चिम) से विधायक डॉ.गोपाल जोशी ने कहा कि मधु आचार्य निरंतर लिखते हुए कीर्तिमान स्थापित करते रहें और शीघ्र की किताबों को शतक पूरा करे। बीकानेर विधानसभा (पूर्व) विधायक सिद्धि कुमारी ने इस मौके पर कहा कि मधुजी का लेखन सामाजिक जागृति के लिए महत्वपूर्ण है।
कोलायत विधायक भंवरसिंह भाटी ने कहा कि साहित्यकार समय की नब्ज को जानता है और वह भविष्य को देखने की क्षमता भी रखता है, यही वजह है कि उसे सदियां याद रखती है। पूर्व मंत्री डॉ.बी.डी.कल्ला ने इस मौके पर राजस्थानी भाषा की समृद्धता को रेखांकित करते हुए कहा कि इस भाषा में जितनी विविधता है, वह दूसरी भाषाओं में कम ही मिलती है। उन्होंने राजस्थानी भाषा की मान्यता के आंदोलन के लिए हर तरह के संघर्ष में साथ रहने की बात कही।
पूर्व महापौर भवानीशंकर शर्मा ने कहा कि मधु आचार्य ने बीकानेर का गौरव बढ़ाया है। निश्चय ही इस पुरस्कार से बीकानेर का मान बढ़ा है। मधुजी इसी तरह से आगे बढ़ते हुए सरस्वती के भंडार को समृद्ध करेंगे। शहर भाजपा अध्यक्ष सत्यप्रकाश आचार्य ने कहा कि लिखने के प्रति मधु आचार्य की ललक ही उन्हें इस मकाम तक लाई है। देहात कांग्रेस अध्यक्ष महेंद्र गहलोत ने इस मौके पर कहा कि मधु आचार्य के निरंतर लिखने से युवाओं को प्रेरणा मिल रही है तो समकक्षों को चुनौती मिलती है। इससे साहित्य का भला ही होगा।
माइसं एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश चूरा ने कहा कि मधुजी समाज के गौरव हैं और ऐसे ही लोगों की वजह से समाज की कीर्ति बढ़ती है। नोखा पालिकाध्यक्ष्  नारायण झंवर ने इस मौके पर कहा कि एक साहित्यकार, पत्रकार या रंगकर्मी के अलावा मधुजी का एक सहज व्यक्तिव ही इनकी सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। मधु आचार्य जैसे लोग कम ही मिलते हैं।
इस मौके पर स्वागत भाषण राजेंद्र जोशी ने दिया। आभार कमल रंगा ने जताया। संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया।

एक यादगार नागरिक अभिनंदन
मधु आचार्य के नागरिक अभिनंदन समारोह में एक तरफ जहां पांच बाई तीन का अभिनंदन-पत्र बनाया गया तो दूसरी ओर दो फीट का खास स्मृति चिह्न दिया गया। 400 संस्थाओं की ओर से दिए गए इस अभिनंदन पत्र में चालीस से अधिक साहित्यकार, राजनेता, कुलपति और प्रशासनिक अधिकारियों की सम्मति भी ली गई। इसके अलावा 12 भाषाओं में मधु आचार्य का सम्मान किया गया। अभिनंदन-पत्र का कवि-कहानीकार वाचन संजय आचार्य ‘वरुण’ ने किया। सम्मान स्वरूप 51 किलो पुष्पकी माला भी आकर्षण का केंद्र रही तो विशेष रूप से बनवाए गए शॉल को भी बहुत सराहा गया।
नागरिक अभिनंदन के दौरान माला राजनेता और व्यापारियों ने पहनाई। साहित्य अकादेमी से इसी सम्मान से पूर्व में सम्मानित बीकानेर के साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा ने श्रीफल प्रदान किया। विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय व जाति के प्रतिनिधियों ने साफा पहनाया। बुद्धिजीवी वर्ग, खिलाड़ी व पदक विजेताओं ने स्मृति चिह्न प्रदान किया। शॉल कला, साहित्य व संगीत से जुड़े युवाओं ने ओढ़ाया। अभिनंदन-पत्र मंचासीन अतिथियों ने भेेंट किया।
‘मधुरम’ डाक्यूमेंटी ने दिखाई मधु-यात्रा
कार्यक्रम की शुरुआत मधु आचार्य के जीवन पर बनाई एक डाक्यूमेंटी से हुई। लगभग 13 मिनट की इस डाक्यूमेंट्री ने उनके जीवन के विविध आयामों को बताया गया। इस डाक्यूमेंट्री का निर्माण वरिष्ठ रंगकर्मी रामसहाय हर्ष ने किया। सूर्य प्रकाशन मंदिर की ओर से मधुजी की पुस्तकों की स्टाल भी इस मौके पर लगाई गई।
गीतों से स्वागत
मधु आचार्य के स्वागत में शायर-नाटककार इरशाद अजीज ने एक गीत लिखा जिसकी स्वर-कल्पना वरिष्ठ संगीतज्ञ डॉ.मुरारी शर्मा ने की। चंद्रशेखर सामरिया, सपनकुमार, रामेश्वर प्रजापत, संविता राजपुरोहित, जीतशिखा और मोनिका प्रजापत ने गीत की प्रस्तुति दी। बांसुरी पर अमराराम, कवास पर बालकिसन और तबले पर आशुतोष पांडे थे। इस मौके पर आर.के.सूरदासाणी ने भी मधु आचार्य के सम्मान में गीत प्रस्तुत किया।

छाई रही राजस्थानी
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता क तौर पर जोधपुर से पधारे डॉ.अर्जुनदेव चारण ने अपने भाषण में राजस्थानी भाषा बोलने की बात कही तो फिर जैसे वक्ताओं में भी राजस्थानी बोलने की होड़ मच गई। बाद में आए वक्ताओं में से सिद्धिकुमारी, बी.डी.कल्ला, सत्यप्रकाश आचार्य ने अपनी बात राजस्थानी में ही कही।
व्यक्तिगत रूप से सम्मानित करने वालों को सैलाब
मधु आचार्य के नागरिक अभिनंदन में एक तरफ जहां 400 संस्थाओं ने सम्मानित किया, वहीं मौके पर भी बहुत सारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों े अपनी उपस्थित दर्ज करवाई। इसके अलावा लगभग दो सौ लोगों ने व्यक्तिगत रूप से मधुजी को सम्मानित किया। आचार्य बेणीदास परिवार की ओर से मधु आचार्य को इस मौके पर विशेष अभिनंदन किया गया।
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से सम्मान मिलने पर आयोजित मधु आचार्य के नागरिक अभिनंदन समारोह में बोलते हुए मधु आचार्य ने कहा कि लिखने के लिए पूरा वक्त मिलने का एक ही राज है कि उन्हें परिवार से पूर्ण अनुकूलता मिली। पिता विद्यासागर जी ने कभी यह नहीं कहा कि नौकरी करो बल्कि उन्होंने नाटक करने की सीख दी। मां शिवकुमारीजी को याद करते हुए जब उन्होंने बताया कि आज से 30-40 साल पहले भी उनकी मां उनके नाटक देखने के लिए पहुंचती थी तो उनका गला भर आय। बड़े भाई आनंद वि.आचार्य के साथ बिताए समय को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भाई ने उनकी बदमाशियों का कभी बुरा नहीं माना। धर्मपत्नी डॉ.चेतना आचार्य ने कभी कोई चीज लाने के लिए नहीं कहा और यही वजह है कि उन्हें आटा, दाल-सब्जी के भाव भी नहीं पता। उन्होंने कहा कि परिवार में नंदकिशोर आचार्य जैसे अग्रज मिले तो बड़े भाई रामकिसन आचार्य मिले, जिन्होंने मेरे लेखन के शौक को देखते हुए एक रंगमंच ही बनवा दिया। डॉ.अर्जुनदेव चारण को राजस्थानी लेखन की प्रेरणा बताते हुए उन्होंने कहा, ‘उनकी निरंतर लेखन के लिए प्रतिबद्धता हमेशा रहेगी।’