बीकानेर। वरिष्ठ नाटककार और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा है मरुप्रदेश के व्यक्ति का रेत चारित्रिक विशेषता है। यहां का व्यक्ति रेत की तरह होता है, जो पल में एक पल में गरम होकर, दूसरे ही पल में ठंडा भी हो सकता है। ‘तन रेतीला सीला-सा मन’ इसी भाव का प्रकटीकरण है। डॉ.चारण ने स्थानीय धरणीधर रंगमंच पर वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार, साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ की पचासवीं कृति ‘तन रेतीला सीला-सा मन’ को लोकार्पित करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा कि एक रचनाकार इसी तरह अपनी स्मृतियों को उकेरता है। जाने हुए को फिर से जानने की यह प्रक्रिया ही किसी व्यक्ति को एक रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठा देती है। इस रूप में मधु आचार्य जब अपनी रचनाओं से भूली हुई चीजों को वापस याद दिलाते हैं तो अपने रचनाकार होने के दायित्व का बखूबी निर्वहन करते हुए नजर आते हैं।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार प्रितपाल कौर ने इस अवसर पर कहा कि एक रंगकर्मी, पत्रकार और साहित्यकार के रूप में तो मधु आचार्य बहुआयामी हैं। एक रचनाकार के रूप में उनके संवेदनशील मन ने जो सृजन किया है, वह अनुभव की आंच में तपकर बाहर आई हुई ऐसी अभिव्यक्ति है, जो बार-बार गहराई में उतरने के लिए आमंत्रित करती है और जितनी बार उनकी रचनाओं को पढ़ते हैं, एक नया अर्थ सामने आता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष रामकिसन आचार्य ने कहा कि साहित्य सरल और सुरुचिपूर्ण होना चाहिए। ऐसा होने से आम-पाठक भी साहित्य से जुड़ता है। ऐसा लिखा जाना चाहिए, जिसे आने वाले समय में भी याद किया जा सके। उन्होंने कहा कि पुस्तकों को खरीदकर पढऩे की प्रवृत्ति हमें अपनानी ही चाहिए। पुस्तकों को खरीदकर पढऩे में ही लेखक का सम्मान है।
इस मौके पर मधु आचार्य ने कहा कि आंकड़ों के लिहाज से भले ही यह पचासवीं कृति हो, उनके लिए आने वाले समय में लिखी जाने वाली कृति भी पहली ही होगी। उन्होंने बताया कि हर बार कुछ नया लिखने की ललक ही इस मकाम तक ले आई है। उन्होंने लोकार्पित कृति के संबंध में कहा कि यह पूरा संग्रह एक यात्रा है, जिसे पांच पड़ावों में पूरा किया है। इन कविताओं में निराशा से आशा की ओर बढऩे का संकल्प है। मनीष पारीक, श्याम सुन्दर व्यास व गौरी शंकर आचार्य का सम्मान किया गया।
इस मौके पर मधु आचार्य के रचनात्मक जीवन पर बुलाकी शर्मा, राजेंद्र जोशी, डॉ. तनवीर मालावत, शशिकांत शर्मा, डॉ.गौरव बिस्सा, किशोरसिंह राजपुरोहित, डॉ.परमजीतसिंह ने विचार रखे। गायत्री प्रकाशन की ओर से गायत्री शर्मा और कल्याणी प्रिंटर्स के मनमोहन कल्याणी ने लोकार्पण हेतु कृतियां भेंट की। स्वागत वक्तव्य धीरेंद्र आचार्य ने दिया। आभार अनुराग हर्ष ने माना। संचालन हरीश बी. शर्मा ने किया।
इनकी साक्षी में हुआ लोकार्पण
इस मौके पर विद्यासागर आचार्य, नंदकिशोर आचार्य, श्रीलाल मोहता, ओम आचार्य, सरल विशारद, कमल रंगा, भंवरलाल भ्रमर, चतुर्भुज व्यास, सरदारअली परिहार, राजाराम स्वर्णकार, नवनीत पांडे, रवि पुरोहित, नदीम अहमद नदीम, संजय आचार्य ‘वरुणÓ, डॉ.ब्रजरतन जोशी, वत्सला पांडे, चंचला पाठक, इंदिरा व्यास, डॉ. सुचित्रा कश्यप, डॉ.मेघना शर्मा, सीमा भाटी, ऋतु शर्मा, संजू श्रीमाली, विनीता शर्मा, प्रीति गुप्ता, रेणुका व्यास, सेणुका हर्ष, सुधा आचार्य, मोनिका शर्मा, भगवती सोनी, अजय जोशी, जेठमल सुथार, श्वेत गोस्वामी, नगेंद्र नारायण किराड़्, रामसहाय हर्ष, अजीत राज, हैलो बीकानेर के राजेश के. ओझा, नमामीशंकर आचार्य, आनंद जोशी, मोहन सुराणा, मौलाना अशरफी, दुर्गाशंकर आचार्य, अनवर उस्ता, राकेश शर्मा, गिरिराज पारीक, जन्मेजय व्यास, प्रशांत गोस्वामी, अशोक सोनी, मोहन थानवी, बी.डी.हर्ष, बुलाकी अग्रवाल, जाकिर अदीब, अशोक बोबरवाल, नितिन वत्सस, राहुल जादूसंगत, डॉ.पीके सरीन, महेंद्र पांडे, सुधीर व्यास, रोशन बाफना, धर्मा, इसरार हसन कादरी, अलादीन निर्वाण, कन्हैयालाल जोशी, बुलाकीदास अग्रवाल, विजय शंकर आचार्य, हरिनारायण व्यास ‘मन्नासा’।(PB)