क्या यार स्वार्थी शब्द के अर्थ का अनर्थ कर रखा है दुनिया ने…..इतने विद्वान् आए पर कोई इस अनर्थ का अर्थ नही बना पाया….. लोग कहते है स्वार्थी होना बुरी बात है…….मुझे भी बचपन से यही कहा गया है , पर मैं हूँ स्वार्थी और रहूंगी – अच्छा रहेगा अगर आप भी मुझसे स्वार्थी बन कर बात करे और मुझे भी वही समझे……अरे मुझे तो स्वार्थी लोग ही पसंद है,क्योंकि स्वार्थी शब्द का मतलब है जो सिर्फ खुद से मतलब रखता हो,जिसे सिर्फ अपनी पड़ी हो…..तो इसमें बुराई क्या है। अब मेरा ही उदाहरण ले लीजिये , मैं एक पत्रकार बनना चाहती हूँ , मैं इस समाज से बुराई को ख़त्म करना चाहती हूँ ,क्योंकि मैं खुद इसी समाज में रहती हूँ, तो इसको कैसे गन्दा रहने दूँ, अब हुई न मैं स्वार्थी…..
जब कोई अपने माँ-बाप की सेवा करता है, तो वो उनसे आशीर्वाद पाना चाहता है, अब वो इंसान भी तो स्वार्थी ही हुआ। असल में हमे स्वार्थियों की ही ज़रूरत है, जो इस समाज को दुनिया को अपना समझे और पुरे स्वार्थ के साथ खुद को इसका हिस्सा समझ कर सुधार करे। मसलन जब कोई व्यक्ति किसी और से प्यार करता है ,उस वक़्त वो भी स्वार्थी ही होता है। आप अपने प्यार के साथ समय बिताना चाहते है क्योंकि जब वो व्यक्ति आपकी नज़रो के सामने होता है तो आप खुश होते है। आप उनको परेशान नही करते क्योंकि उनको परेशान देख आप भी असहज हो जाते है ,तो हुए न आप भी स्वार्थी….
क्या बुराई है इस शब्द में
‘ये दुनिया मेरी, ये समाज मेरा
ये सरकार मेरी, तो ये सरोकार भी मेरा’
जिस दिन हर एक व्यक्ति ऐसा ‘स्वार्थी’ बन जाए। उस दिन ये दुनिया कई लांछनों से बच जाएगी।
इस बात में कोई दो राय नही है की कुछ बुरे स्वार्थी होते है,तो कुछ भले… जैसे सिक्के के दो पहलु होते है वैसे हर चीज़ की दो किस्मे होती है। ये बताने की बिलकुल ज़रूरत नही है की किस किस्म के स्वार्थियों की ज़रूरत है इस दुनिया को। जैसे दुनिया के लोग निस्वार्थ भाव की बात करते है…वो तो बिलकुल जायज़ नही है,क्योंकि अगर एक इंसान अपने कार्य से प्यार नही करेगा तात्पर्य उसे लेकर स्वार्थी नही होगा,तब तक पुरे मन से काम नही करेगा। तनमयता तभी आएगी जब स्वार्थ होगा,तो स्वार्थी बनिये इस दुनिया के लिए और गर्व से कहिये ‘हाँ मैं हूँ स्वार्थी’।
जय हिन्द।