फिल्म निर्देशक नीरज घेवन की ‘मसान’ को कान्स अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अन सर्टेन रिगार्ड श्रेणी में एफआईपीआरईएससीआई पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उनके सहायक रह चुके घेवन के लिए यह फिल्म बडी उपलब्धि है जो वाराणसी की पृष्ठभूमि में बनाई गयी फिल्म है और उनकी पहली निर्देशित फिल्म है। पुरस्कार जीतने के बाद घेवन ने इसके बारे में ट्वीट किया।
‘मसान’ में रिचा चड्ढा, संजय मिश्रा, विक्की कौशल, विनीत कुमार, श्वेता त्रिपाठी और पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिकाओं में हैं। इसमें एक साथ तीन कहानियां आकर मिलती हैं।
जीवन और सिनेमा के बीच जो कुछ हो सकता है निर्देशक नीरज घेवन ने अपनी पहली फिल्म मसान (अ सेलिब्रेशन ऑफ लाइफ, डेथ एंड एवरीथिंग इन बिटवीन) में वह दिखाने की कोशिश की है। फिल्म में जीवन की कहानी पर उसका दर्शन हावी है। जीवन दर्शन की रेल पर्दे पर धड़धड़ाती गुजरती है और कहानी पुल की तरह थरथराती रह जाती है। अतः अगर आप सिनेमा में मुकम्मल कहानी देखने के आदी हैं तो मसान का अनुभव आपको रास नहीं आएगा।
फिल्म काशी में एक साथ दो नावों की सवारी करती है। एक कहानी देवी (रिचा चड्ढा) की है, जिसका एक पुरुष मित्र के साथ एमएमएस बन गया है। अब पुलिसवाला देवी और उसके पिता (संजय मिश्रा) को ब्लैकमेल कर रहा है। तीन लाख रुपये नहीं दिए तो वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड कर देगा । दूसरी कहानी डोम जाति के दीपक (विकी कौशल) की है, जिसे ऊंची जाति की शालू (श्वेता त्रिपाठी) से प्यार हो गया है। स्थिति तब त्रासद हो जाती है जब शालू इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे दीपक की सच्चाई जानकर भी उसका प्यार स्वीकार कर लेती है और तभी एक बस दुर्घटना में परिवार समेत मारी जाती है। दीपक उसकी चिता को अग्नि देता है। ज्ञानियों ने सदा कहा है कि जीवन एक दुख है।
उन्होंने जिस धागे से इन कहानियों के सूत्र बांधे हैं वह कच्चा है। तर्क करते ही टूट जाता है। नीरज गंभीर विषयों को छूते हुए निकल भर जाते हैं। कोई विमर्श नहीं दिखता। उनकी कहानियां बहस की मुख्यधारा में शामिल होने या प्रतिरोध उपस्थित करने के बजाय कच्ची गलियों के रास्ते निकल जाती है।
फिल्मकार पलायन को अपनी राह बनाता है। मसान मुख्य रूप से कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के लिए याद रहती है। रिचा चड्ढा करिअर के सबसे बेहतर परफॉरमेंस में हैं। कॉमेडी के लिए पहचाने जाने वाले संजय मिश्रा बिल्कुल जुदा संजीदा भूमिका में हैं। विकी कौशल और श्वेता त्रिपाठी असर छोड़ते हैं। फिल्म के कुछ दृश्य बहुत खूबसूरत हैं। नीरज में संभावनाएं हैं मगर उन्हें मौलिकता की तलाश में थोड़ा और गहरे उतरना होगा। दार्शनिक पलायन के बजाय हकीकत से मुठभेड़ करनी होगी। मसान देख कर लगता है कि सिनेमा एक दुख है। जबकि सिनेमा ऐसा जादू है जिसमें दुख को भी सुख में बदल देने की ताकत है।