विरोध :
1. जन विरोधी बैंकिंग सुधारों एवं कामगार विरोधी श्रम सुधारो का
2. सरकार द्वारा ट्रेड यूनियन अधिकारों के उल्लंघनो के प्रयासो का
3. नियमित/स्थायी बैंकिंग कार्यो की आउटसोर्सिंग (ठेकाप्रथा) का
मांगे :
1. नोटबंदी के दौरान कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा बैंक कार्यालयीन समय के पश्चात् किये गये कार्य के लिए उचित भुगतान की प्रतिपूर्ति की जाए।
2. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 में ग्रेच्युटी सीमा राशि को समाप्त कर सेवानिवृत्ति पर ग्रेच्युटी व अवकाश नगदीकरण की राशि को पूर्णतः आयकर से मुक्त किया जाये।
3. सभी बैंको में कामगार/अधिकारी निदेशको की नियुक्ति अविलंब की जाये।
4. बैंक कर्मियों के आगामी वेतन पुनःरीक्षण की प्रक्रिया की शुरूआत शीघ्र की जाये।
5. बैंकों में आरबीआई, केन्द्र सरकार के समान पेंशन लागू की जाए।
6. केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत अनुकम्पा नियुक्ति योजना लागू की जाये।
7. समस्त संवर्गो में समुचित भर्ती की जाए।
8. बैंको द्वारा नोटबंदी में किये गये व्यय की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जाए।
9. पाँच दिवसीय बैंकिंग को शीघ्र प्रारंभ किया जाये।
10. जानबूझकर बैंक ऋण नहीं चुकाने वालो पर दण्डात्मक कार्यवाही की जाये।
मंगलवार प्रातः 11 बजे हड़ताल के दिन एसबीबीजे की पब्लिक पार्क शाखा के समक्ष बीकानेर केन्द्र पर कार्यरत बैंक कर्मचारियो/अधिकारियों ने विशाल प्रदर्शन किया एवं केन्द्र सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों के विरोध में जमकर नारेबाजी की। उपस्थित बैंककर्मियों को यूएफबीयू के स्थानीय संयोजक का. वाई.के. शर्मा, सह संयोजक जितेन्द्र माथुर, वी.के. शर्मा, सीताराम कच्छावा, आनन्द शुक्ला, जे.पी. वर्मा, एम.एम.एल. पुरोहित, बी.एस. गिल, शंकर खत्री आदि ने संबोधित किया । प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाओ ने भी भागीदारी निभाई।
ज्ञातव्य हो कि मोदी सरकार बैंक कर्मचारियों एवं बैकिंग उद्योग में कर्मचारी विरोधी सुधारों के नाम पर बेमेल मर्जर एवं निजीकरण के ऐजेंडा पर तेजी से आगे बढ़ रही है। कई दशको के संघर्षो के उपरांत जो श्रमिक अधिकार कर्मचारियों ने प्राप्त किये है उन्हे समाप्त करने की साजिश की जा रही है, जिसका बैंककर्मी विरोध करते है। सरकार देश के बैंको के सार्वजनिक क्षेत्र के स्वरूप को नष्ट करने पर आमादा है तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी भागीदारी को 50 प्रतिशत से कम करने की दिशा में काम किया जा रहा है जो कि सीधा साधा निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करना है। बैंकों का संचालन निजी उद्योगपतियों को सौंपने की तैयारी की जा रही है तथा कन्सोलिडेशन के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बेमेल मर्जर किया जा रहा है तथा बैंकों के एनपीए को कम करने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई जा रही है।