Rajasthan Rajwada's 100yrs History
Rajasthan Rajwada's 100yrs Historyआचार्य तुलसी की मासिक नवमी पुण्यतिथि मनाई, पुस्तक का किया लोकार्पण
बीकानेर। पशुओं का कभी कोई इतिहास नहीं होता है। इंसानों का इतिहास होता है। पूर्वजों का अनुभव हमें इतिहास में देखने को मिलता है और इसी अनुभव से हम अपने भविष्य को सुधार सकते हैं। उक्त विचार शनिवार सुबह करीब नौ बजे नैतिकता के शक्तिपीठ पर मुनिश्री पीयूष कुमार ने कहे। तेरापंथ धर्म संघ के नवमें आचार्य तुलसी की मासिक नवमी पुण्यतिथि के अवसर पर ‘तेरापंथ का इतिहास बोध’  संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री पीयूष कुमार ने कहा कि तेरापंथ का इतिहास लिखा है, लिखा जा रहा है तथा आगे भी लिखा जाएगा। मुनिश्री विनीत कुमार ने कहा कि रजवाड़ों व जैन धर्म में काफी जुड़ाव रहा है। तेरापंथ धर्म संघ की स्थापना मेवाड़ की भूमि पर ही हुई तथा पहले श्रावक रावला के ठाकर मोखम सिंह थे। बीकानेर में भी महाराजा गंगासिंह व सादुलसिंह की भी श्रद्धा इतिहास में जैन धर्म के प्रति देखने को मिली। महाराजा गंगासिंह के आग्रह पर पहला चातुर्मास बीकानेर में हुआ। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डॉ. किरण नाहटा ने कहा कि इतिहास में मध्यकालीन के बाद विज्ञप्ति पत्र जो कि आचार्यश्री को निमंत्रण हेतु दिए जाते थे वह पचास फुट से भी अधिक लम्बे होते थे, जिनमें मार्ग आदि का पूरा विवरण होता था। जैन धर्म ने इतिहास लेखन में विलक्षण कार्य किए हैं तथा जैन धर्म न केवल श्रावकों के बल्कि पूरे विश्व के हित की बात करता आया है जैन धर्म। आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के कार्यों की चर्चा करते हुए छाजेड़ ने कहा कि आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर, आचार्य तुलसी फिजियोथेरेपी सेंटर के माध्यम से लोक कल्याण किया जा रहा है तथा शोध संस्थान के माध्यम से साहित्य निर्माण का कार्य निरन्तर जारी है। स्वच्छ गंगाणा अभियान चलाकर घर-घर से कचरा संग्रहण गत चार माह से अनवरत चल रहा है। इस अवसर पर मुनिश्री शान्ति कुमार ने नमस्कार महामंत्र, चैनरूप छाजेड़ ने मंगलाचरण तथा मुनिश्री श्रेयांस कुमार ने गीतिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम में स्वागत भाषण डॉ. पी.सी. तातेड़ ने किया, आभार जतनलाल दूगड़ तथा संचालन जैन लूणकरण छाजेड़ ने किया।
पुस्तक का हुआ लोकार्पण- आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि के अवसर पर डॉ. ब्रजमोहन जावलिया की पुस्तक तथा आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान दवारा प्रकाशित  19वीं  पुस्तक ‘राजस्थान के रजवाड़ों का सौ वर्ष का इतिहासÓ पुस्तक का लोकार्पण उपस्थित चारित्र आत्माओं मुनिश्री पीयूष कुमार, मुनिश्री शान्ति कुमार, मुनिश्री श्रेयांस, मुनिश्री विनीत कुमार, अभिलेखागार निदेशक डॉ. महेन्द्र खडग़ावत, डॉ  भंवर भादाणी, डॉ. पी.सी. तातेड़, डॉ. धर्मचन्द जैन, डॉ. किरण नाहटा,  ए.जी. खोखर, सखामित्र अश्विनी, जतन दूगड़ एवं जैन लूणकरण छाजेड़ ने किया।
जिसका इतिहास नहीं, उसका वर्तमान और भविष्य अच्छा नहीं : खडग़ावत
पुस्तक लोकार्पण के दौरान अभिलेखागार निदेशक महेन्द्र खडग़ावत ने कहा कि जिसका इतिहास नहीं होता उसका वर्तमान और भविष्य अच्छा नहीं हो सकता। इतिहास देखकर ही हम अपने वर्तमान व भविष्य को सुधार सकते हैं। सीख व अनुभव इतिहास ही देता है। खडग़ावत ने कहा कि आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम करके श्रद्धांजलि देना वाकई किसी महान् आत्मा के प्रति कृतज्ञता दर्शाता है। पूरे हिन्दुस्तान में यदि पांडुलिपि लेखन का कार्य हो रहा है तो वह जैन मुनियों के द्वारा हो रहा है। उन्होंने कहा की बीकानेर में शोधकार्य केवल आचार्य तुलसी शोध संस्थान ही कर रहा है। जैन समाज की लेखन के प्रति जागरुकता यह बताता है कि प्रबुद्धता इतिहास से ही समृद्ध होती है।
इतिहास जानना सत्य से रुबरु होना : डॉ भादाणी
पुस्तक लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि भंवर भादाणी ने कहा कि जैन मुनि विद्या केन्द्रित हैं जिसके परिणामस्वरूप जैन समाज भी प्रबुद्ध व समृद्ध है। भादाणी ने कहा कि समाज में दो धाराएं चलती हैं जो दो दृष्टिकोण बताती हैं। इतिहास में जैन धर्म का लेखन कार्य अच्छा हुआ जो आज हमें अनुभव व सीख दे रहा है। इतिहास जानना सत्य से रू-ब-रू होना है।
तेरापंथ भवन से प्रारंभ हुई पदयात्रा- शनिवार सुबह करीब पौने नौ बजे तेरापंथ भवन से नैतिकता के शक्तिपीठ तक पदयात्रा निकाली गई। जिसमें मुनिवृंदों व जैन समाज के अनेक लोग आचार्य तुलसी व तेरापंथ धर्म संघ के जयकारे लगाते शक्तिपीठ पहुंचे।
किया सम्मान- पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भंवर भादाणी को नयनतारा छलाणी ने स्मृति चिह्न तथा बसन्त नौलखा ने साहित्य भेंट किया। महेन्द्र खडग़ावत को किरणचन्द डागा व मनोहरलाल नाहटा ने स्मृतिचिह्न व साहित्य भेंट किया वहीं ए.जी. खोखर का शुभकरण सिंगी, इन्द्रचन्द सेठिया ने तथा सखामित्र अश्विनी का कवि मधुकर व डॉ. धर्मचन्द्र जैन ने सम्मान किया।
इनकी रही उपस्थिति- पदयात्रा से लेकर संगोष्ठी तक जैन समाज के साथ-साथ अन्य गणमान्यजनों की भी उपस्थिति रही जिनमें मुख्य रूप से गौरीशंकर ‘मधुकरÓ, बसन्त नौलखा, इंद्रचंद सेठिया, कमलनारायण आचार्य, देवेद्र कोचर,  मनीष छाजेड़, मनीष बाफना, विजय कोचर, संजय श्रीमाली, भंवरलाल बडग़ुजर, मधु छाजेड़, रेनू बाफना, भावना छाजेड़, सुंदर देवी, संजू ललानी तथा आसकरण बोथरा आदि थे।