पर्यावरण संरक्षण का अमर सन्देश देगी 'साको 363', जूनागढ़ किले में चल रही है शूटिंग
पर्यावरण संरक्षण का अमर सन्देश देगी ‘साको 363’, जूनागढ़ किले में चल रही है शूटिंग

बीकानेर । स्थानीय जूनागढ़ में जबरदस्त तरीके से चल रही है साको 363 की शूटिंग। दिनभर मेला लगता रहता है दर्शकों का। साको फिल्म में मुख्य किरदार अमृतादेवी बिश्रोई का है जो निभा रही है युवा अभिनेत्री स्नेहा उलाल। स्नेहा लक्की फिल्म की हीरोईन और ऐश्वर्या राय की हमशक्ल मानी जाती है। अमृतादेवी के पति रामोजी का किरदार निभा रहे हैं पंजाबी हीरो एक था टाईगर फिल्म के हीरो गेवी चहल। श्री जम्भेश्वर पर्यावरण एवं जीवरक्षा प्रदेश संस्था द्वारा फिल्म का निर्माण किया जा रहा है। संस्था के अध्यक्ष एवं फिल्म के निर्माता रामरतन बिश्रोई ने बताया कि एक पेड़ को बचाने के लिए इतनी बड़ी संख्या में शहादत दिए जाने की मिसाल विश्व इतिहास में और कहीं नहीं मिलती। बलिदान की इस गाथा को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए ही संस्था ने फिल्म बनानी शुरू कीहै।
बॉलीवुड अभिनेता मिलिन्द गुनाजी विलेन की भूमिका में गिरधरदास भण्डारी का किरदार निभा रहे हैं। मुम्बई से साहिल कोहली, राजेशसिंह, शाजी चौधरी, बृजगोपाल, विमल उनियाल, संजय गढ़ई, नटवर पारीक, बीके व्यास सागर, रावतदेव गोस्वामी, गजेन्द्रसिंह मण्डली, कमल अवस्थी सहित 70 से अधिक कलाकार अपना- अपना किरदार निभा रहे हैं। फिल्म के डायरेक्टर कल्याण सीरवी ने बताया कि अभिनेता एवं तकनीकी टीम के सभी लोग बीकानेर में ही रूके हुए हैं। जूनागढ़ किले में राजदरबार के दृश्य फिल्माये जा रहे हैं। इससे पहले 25 दिन तक नागौर जिले की जायल तहसील के ग्राम रोटू की सीमा में खेजड़ी वृक्षों के बीच शूटिंग की गई। संस्था के प्रदेश मीडिया मंत्री रामप्रसाद बिश्नोई ने बताया कि साको 363 की कहानी में वृक्ष लगाना, वृक्षों की रक्षा करना, प्रकृति की सेवा करना, वन्यजीवों की रक्षा करना तथा अन्याय के विरूद्ध समर्पित भाव से संघर्ष करने के दृश्य फिल्माये जा रहे हैं। भावुक दृश्यों को देखकर लोग बड़ी संख्या में आकर्षित हो रहे हैं। निर्माता रामरतन बिश्रोई ने बताया कि आज विश्व की सभी सरकारें पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चिन्तित रहती है मगर आज से तीन सौ वर्ष पहले सामन्ती युग में संघर्ष करके पेड़ों को बचाया था और चिपको आन्दोलन करके 363 नर नारी पेड़ों के चिपक गये और राजा की क्रूर सेना ने उन्हें काट डाला था। उस सत्य घटना पर आधारित साको की कहानी पर्यावरण शुद्धि, जीवदया और वृक्ष रक्षा का सन्देश जन-जन तक पंहुचाएगी। वनों और वन्यजीवों का महत्व उजागर होगा। तेज धूप और गर्मी के बावजूद भी सभी कलाकार प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम रात्रि 9 बजे तक शूटिंग कर रहे हैं।

363 लोग कट गए मगर नहीं कटने दिया पेड़
284 वर्ष पूर्व जोधपुर दरबार के महाराजा अभयसिंहजी द्वारा मेहरानगढ़ में फूल महल नामक राजभवन का निर्माण किया जा रहा था। निर्माण के लिए चूना पकाने हेतु लकड़ी की आवश्यकता पड़ी तो राजकर्मी सिपाहियों की सेना लेकर खेजड़ली गांव में पंहुचे थे। गाँव के रामोजी खोड की धर्मपत्नी अमृतादेवी बेनीवाल बिश्नोई ने सिपाहियों को पेड़़ काटने से रोका। राजकर्मी नहीं माने तो अमृतादेवी ने पेड़ बचाने का नारा लगाकर लोगों का आह्वान किया और पेड़ के चिपककर खड़ी हो गई। सिपाहियों ने उसको काट दिया। अमृतादेवी की तीन बेटियों ने भी पेड़ों के चिपककर बलिदान दे दिया। अमृतादेवी ने पेड़ों को बचाना अपना कर्त्तव्य समझा था। शरीर को तिनके के समान समझकर हरसम्भव पेड़ की रक्षा की। अमृतादेवी बिश्रोई ने नारा दिया था कि- ‘‘सिर साटै रूँख रहे तो भी सस्तो जाण।’’ बिश्रोई समाज के 294 पुरुष एवं 69 महिलाओं ने अपने ईष्टदेव भगवान श्री गुरु जम्भेश्वरजी के आदर्श वचनों पर चलकर खेजड़ी पेड़ की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। जब यह सूचना महाराजा को मिली तो उन्होनें आकर बिश्रोई समाज से माफी मांगी और भविष्य में उनके क्षेत्र में पेड़ नहीं काटने व वन्यजीवों का शिकार नहीं करने का ताम्रपत्र लिखकर दिया था। बलिदानियों की उच्च सोच का सन्देश देकर पर्यावरण के प्रति जन-जन को जागरूक करना ही इस फिल्म का उद्देश्य है।

फिल्म रिलीज की तारीख तय
यह फिल्म 23 सितंबर को खेजड़ली शहीदों की पुण्यतिथि के दिन रिलीज होगी। उस दिन उक्त शहीदी घटना के 285 वर्ष पूरे होंगे।

सत्य घटना पर है फिल्म की कहानी
इस फिल्म में समाज के साहित्यकार रामरतन बिश्रोई ने ऐतिहासिक तथ्यों के प्रमाण जुटाकर फिल्म की कहानी को साकार रूप दिया है। फिल्म की पटकथा फिल्म के डायरेक्टर कल्याण सीरवी ने लिखी है। सत्य घटना के सभी तथ्यों को प्रमाणों के आधार पर ही अन्तिम रूप दिया गया है। जाम्भाणी साहित्य, ऐतहासिक स्थलों के प्रमाण, राजस्थान के इतिहास, जोधपुर रियासत के इतिहास, राजस्थान सरकार, भारत सरकार तथा अन्य राज्यों की सरकारों द्वारा अमृतादेवी बिश्रोई के नाम से दिए जाने वाले पुरस्कारों को शुरु करने से पहले दिये गये प्रमाण भी जुटाए गए हैं। शिक्षा विभाग राजस्थान द्वारा पाठ्यक्रम के रूप में जारी पुस्तकों में भी इस घटना का संक्षेप में विवरण बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। फिल्म के माध्यम से जब इसका विस्तृत सन्देश विश्व के कोने कोने तक पंहुचेगा तो पेड़ बचाने के अभियान को मजबूती मिलेगी। नई पीढ़ी जागरूक होगी। पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।