नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएन दत्तू की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के संथारा को आत्महत्या करार के आदेश पर रोक लगा दी है। याचिका में जैन समाज का पक्ष नहीं सुनने के साथ ही धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताया। जिस पर अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी कर राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले निखिल सोनी, राज्य सरकार के साथ सभी पक्षों को चार सप्ताह में जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया।
राजस्थान हाईकोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई के बाद 10 अगस्त को संथारा को आत्महत्या मानते हुए अपराध बताया था। इस जीवन के अधिकार से बाहर मानते हुए संविधान के खिलाफ मानते हुए संथारा या संल्लेखना लेने वाले एवं अन्य सहयोगियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए थे। राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद समस्त जैन समाज ने 24 अगस्त को पूरे भारत में जैन समाज ने बंद रखते हुए मौन जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया था। इसके बाद भी पूरे जैन समाज में आक्रोश देखने को मिल रहा था।इसी के खिलाफ जैन समाज के साथ ही राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
संथारा पर राजस्थान हाईकोर्ट के डबल बैंच द्वारा दिए गए रोक के फैसले पर उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए स्थगन आदेष से जैन समाज ने जहां इसे न्याय की राह में एक विजय माना है। वहीं संथारा कर रही बदना देवी के परिजनों को राहत महषूस हुई है। उल्लेखनीय है कि बीकानेर के उपनगर गंगाषहर के स्व. माणकचन्द डागा की धर्मपत्नी श्रीमती बदनी देवी डागा ने 82 वर्ष की उम्र में संथारा स्वीकार किया है। उनके परिजन भंवरलाल डागा उल्लेखनीय बात बताते ह कि 20 जून के बाद अस्वस्थता बढती गई और 15 जुलाई तक ऑक्सीजन पर रहने के बाद उन्होंने अपने पुत्रों किरणचन्द, सुरेन्द्र व महेन्द्र डागा को कहा कि मेरा अब संथारा करने की इच्छा है मेरा अगला भव (जन्म) सुधर सके अतः आज्ञा दे दो। डागा बताते है कि 24 जुलाई तक उनकी संथारा की भावना को किसी ने स्वीकार नहीं किया और ईलाज के हर संभव प्रयास जारी रहे। 17 जुलाई को प्रातः उन्होंने कहा कि मेरी ऑक्सीजन हटा दो तथा कहा कि मैने संकल्प ले लिया है मैं कोई दवा नहीं लूंगी। बदनी देवी 20 जुलाई तक अपने परिजनों से संथारा ग्रहण करवाने की बात कहती रही। उनकी उत्24 जुलाई तक उनकी संथारा की भावना को किसी ने स्वीकार नहीं किया और ईलाज के हर संभव प्रयास जारी रहे। 17 जुलाई को प्रातः उन्होंने कहा कि मेरी ऑक्सीजन हटा दो तथा कहा कि मैने संकल्प ले लिया है मैं कोई दवा नहीं लूंगी। बदनी देवी 20 जुलाई तक अपने परिजनों से संथारा ग्रहण करवाने की बात कहती रही। उनकी उत्कृष्ट भावना को देखते हुए गंगाषहर में चातुर्मास कर रही चारित्र आत्माओं से निवेदन किया गया कि इनकी भावना को देखते हुए इनको संथारा दिलाया जाए। साधु-सन्तो ने भी कहा कि अभी दो-चार दिन इन्तजार करें आखिर 25 जुलाई को दोपहर 3 बजे के बाद बदनी देवी को तिविहार संथारा के पच्चखाण (संकल्प) करवाए गए। आज उनके अनषन को 46 दिन हो गए हैं। अपनी पूर्ण जागरूकता सेे संयम साधना को प्रबल कर रही है।
भंवरलाल डागा ने बताया कि बदनी देवी की बड़ीयासास श्रीमती जेसराज जी डागा की धर्मपत्नी ने लगभग 30 वर्ष पूर्व संथारा लिया था। उनको 7 दिन का संथारा आया था। यह डागा परिवार मे दूसरा संथारा है। डागों की इस गली में यह चौथा संथारा है। इससे पहले श्रीमती धनीदेवी पुगलिया, श्रीमती केषरदेवी बैद, एवं श्रीमती मीरादेवी डागा ने भी संथारा लिया था। बदनी देवी के तीन पुत्र एक पुत्री श्रीमती सुधा-षुभकरण बोथरा है तथा 4 पौत्र व 6 पौत्रियां एक दोहिता व एक दोहिती है। इन्होने मिडल स्कूल तक की षिक्षा ग्रहण की। पूरे जीवन मे कोई लम्बी तपस्या कभी नहीं की परन्तु प्रत्येक सम्वतसरी को उपवास करती रही है।
विशेष उल्लेखनीय बात यह कि बदनी देवी डागा द्वारा संथारा लेने के बाद उनके स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार दिखाई देने लगे है। उनका ब्लड प्रेषर, प्लस इत्यादि सारे पेरामीटर सामान्य हो गए है।
इधर आज संथारा पर रोक हटने के बाद दर्षनार्थियों का तांता लग गया है। घर में जप का क्रम जारी है तथा वहां दर्षनार्थ आने वाले लेाग कुछ न कुछ संकल्प ग्रहण करके जाते है।
इधर जैन महासभा के महामंत्री जैन लूणकरण छाजेड़ ने समाज के लोगों से आग्रह किया है कि यह स्थगन आदेष है यह राहत का विषय है इस निर्णय से अब एक बार हमें हमारी संथारा प्रणाली पर होने वाली कानूनी कार्यवाही से राहत मिली है परन्तु कानूनी प्रक्रिया अभी भी वैसे ही है। छाजेड़ ने जैन समाज के लोगों से कहा कि प्रयासों में षिथिलता ने आये ऐसे अपेक्षा पूरे समाज से है। जैन महासभा ने सम्पूर्ण जैन समाज के प्रति आभार व्यक्त करते हुए भारतीय न्याय प्रणाली के विष्वास व्यक्त किया है।