दुनिया में हिंदू धर्म और भारत की प्रतिष्ठा स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद ने एक आध्यात्मिक हस्ती होने के बावजूद युवाओं के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। स्वामी विवेकानंद को देश और युवाओं से काफी प्यार था और उन्होंने युवकों को प्रेरित करने के लिए काफी कुछ कहा। विवेकानंद का मानना था कि विश्व मंच पर भारत की पुनर्प्रतिष्ठा में युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है। दरअसल स्वामी विवेकानंद में मेधा तर्कशीलता युवाओं के लिए प्रासंगिक उपदेश जैसी कुछ ऐसी बातें हैं कि युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि युवकों को गीता पढ़ने के बजाय फटबॉल खेलना चाहिए। विवेकानंद कहते थे कि युवाओं की स्रायु फौलादी होनी चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।
आजकल युवाओं को स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत भाते जरूर हैं परंतु उनके जीवन में इन सिद्धांतों का कोई खास असर नहीं दिख रहा है। स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में विश्वनाथ दत्ता के कुलीन परिवार में 1863 को हुआ था। कलकत्ता उच्च न्यायालय के अटार्नी दत्ता बहुत ही उदार एवं प्रगतिशील व्यक्ति थे। विवेकानन्द की मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था और उन पर अपने पिता के तर्कसंगत विचारों तथा मां की धार्मिक प्रवृति का असर था।
विवेकानंद पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज थे। स्कॉटिश चर्च कॉलेज के प्राचार्य डॉ विलियम हस्टी ने उनके बारे में लिखा है मैंने काफी भ्रमण किया है, लेकिन दर्शन शास्त्रों के छात्रों में ऐसा मेधावी और संभावनाओं से पूर्ण छात्र कहीं नहीं दिखा यहां तक कि जर्मन विश्वविद्यालयों में भी नहीं देखा।
स्वामी विवेकानंद ने धर्मग्रंथों के अलावा विविध साहित्यों का भी गहन अध्ययन किया। वह ब्रह्म समाज से जुड़े लेकिन वहां उनका मन नहीं रमा। एक दिन वह अपने मित्रों के साथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के यहां गए। जब नरेंद्रनाथ ने भजन गाया तब परमहंस बहुत प्रसन्न हुए। कर्मशील नरेंद्रनाथ ने परमहंस से पूछा क्या आप ईश्वर में विश्वास करते हैं। क्या आप उन्हें दिखा सकते हैं। परमहंस ने उनके सवालों का हां में जवाब दिया। विवेकानंद ने प्रारंभ में परमहंस को अपना गुरू नहीं माना लेकिन काफी समय तक उनके संपर्क में रहकर वह उनके प्रिय शिष्य बन गए। स्वामी शांतात्मानंद कहते हैं कि परमहंस के आध्यात्मिक सपंर्क से उनके मन की अशांति जाती रही। बताया जाता है कि दुनियाभर में स्वामी रामकृष्ण को स्वामी विवेकानंद के चलते ही ख्याति मिली।
वर्ष 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके ओजपूर्ण भाषण से ही विश्वमंच पर न केवल हिंदू धर्म बल्कि भारत की भी प्रतिष्ठा स्थापित हुई। ग्यारह सितंबर 1893 को इस संसद में जब उन्होंने अपना संबोधन अमेरिका के भाइयों और बहनों से प्रांरभ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। उनके तर्कपूर्ण भाषण से लोग अभिभूत हो गए।
प्रेरक संस्मरण
एक घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। एक दिन एक अंग्रेज मित्र तथा कु मूलर के साथ वे किसी मैदान में टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज अपनी जान बचाने को जल्दी से भागकर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा खड़े हुए।
स्वामीजी ने यह सब देखा और उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देखकर वे सांड के सामने खड़े हो गए और सोचने लगे अंत आ ही पहुंचा।
बाद में उन्होंने बताया था कि उस समय उनका मन हिसाब करने में लगा हुआ था कि सांड उन्हें कितनी दूर फेंकेगा। परंतु कुछ कदम बढ़ने के बाद ही वह ठहर गया और अचानक ही अपना सिर उठाकर पीछे हटने लगा। स्वामी जी को पशु के समक्ष छोड़कर अपने कायरतापूर्ण पलायन पर वे अंग्रेज बड़े लज्जित हुए। ऐसी खतरनाक परिस्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके। स्वामी जी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा कि खतरे और मृत्यु के समक्ष वे अपने को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करते हैं क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किए हैं।
स्वामी विवेकानन्द की प्रसांगिकता पर डाला प्रकाश
बीकानेर। बी.जे.एस. रामपुरिया जैन महाविद्यालय में रा.से.यों. के तत्वावधान में राष्ट्र के अग्रदूत व आध्यात्मिक पिता स्वामी विवेकानन्दजी की जयन्ती, ‘युवा दिवस’ पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में रामकृष्ण कुटीर के सचिव महादेव शर्मा थे जिन्होंने आज के युग में स्वामी विवेकानन्द की प्रसांगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने उद्बोधन स्वामीजी के विचारों को पिरोते हुए कहा कि जीवन में अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए। लक्ष्य प्राप्ति के लिए सकारात्मक सोच होनी चाहिए व ‘मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है’ इस पर केन्द्रित होकर किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानन्द के अनुसार मनुष्य का निर्माण विचारों से होता है। विचारों के विकास के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह शिक्षा भी मनुष्य जीवन व चरित्र निर्माण करनें वाली होनी चाहिए। उन्होंने स्त्री शिक्षा पर बोलते हुए बताया कि स्त्रियां स्वयं निर्णय करें की वे कैसी शिक्षा प्राप्त करें। इन विचारों से उन्होंने उनमें आत्मविश्वास और सम्मान का भाव जागृत किया। उनके अनुसार सभी समस्याओं का समाधान शिक्षा है। धर्म के ऊपर स्वामीजी के विचारों पर बोलते हुए महादेवजी नें बताया कि स्वामीजी कहते थे ‘जिस प्रकार सभी जल धाराएं अपने जल को सागर में लाकर मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के सारे धर्म ईश्वर की और ले जाते है।’ महादेवजी नें विज्ञान और धर्म पर भी प्रकाश डाला और बताया कि स्वामीजी के अनुसार यह दोनों एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी न होकर एक दूसरे के पूरक है।
कार्यक्रम का अन्त उन्होंने स्वामीजी की उन पंक्तियों से किया जिससे युवाओं को अपने चरित्र, विचार और भविष्य बनानें में सहायता मिलती हो- ‘‘उठो जागो अब जब तक मत रूको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो।’’
कार्यक्रम का संचालन एन.एस.एस. अधिकारी विक्रम झा नें किया। इस अवसर पर महाविद्यालय प्राचार्या नें छात्रों से अपने वनस्थली विद्या पीठ में बिताए छात्र जीवन के कुछ पल साझा किए। जिसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार स्वामी विवेकानन्द के विचारों ने उनके जीवन में सफलता के द्वार खोल दिए। उन्होंने स्वयंसेवकों से भी विवेकानन्द के विचारों को पढ़नें और उन्हें अपनें जीवन में आत्मसात करनें के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर महाविद्यालय कम्प्यूटर विभाग के आत्माराम शर्मा, व प्रो. उमेश तंवर वाणिज्य विभाग के डॉ. मनीष मोदी ने अपने विचार रखे।