बीकानेर। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के शोध अध्ययेता इटली विद्वान डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की 131 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा राजकीय संग्रहालय परिसर में तैस्सितोरी की प्रतिमा स्थल पर राजस्थानी भाषा साहित्य के पथ प्रदर्शक तैस्सितोरी के कार्यो की उपादेयता पर चर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में हिन्दी राजस्थानी के साहित्यकारों ने तैस्सितोरी की प्रतिमा पर पुष्पाजलि अर्पित की कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मदन सैनी ने कहा कि डा. एल. पी. तैस्सितोरी ने इटली से आकर यहां राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के शोध का कार्य किया, हमें अपनी मायड भाषा पर गर्व होना चाहिये। उन्होंने कहा कि राजस्थानी को संविधान की 8 वीं अनुसुची में मान्यता मिलते ही इसका ज्यादा विस्तार होगा। उन्होने कहा कि राजस्थानी के साहित्यकार डॉ. तैस्सितोरी ने अपने देश में रहते हुए ही राजस्थानी भाषा को पढऩा व लिखना सीखा। उसी समय से उनकी भारत आकर यहां की भाषाओं ( विशेष रूप से राजस्थानी ) का भलीभांति अध्ययन करने की इच्छा जाग्रत हुई।

उन्होंने अपनी एक कृति की प्रस्तावना में यही लिखा है कि ”मेरी प्रबल अभिलाषा सदैव रही है कि ( भारत की ) जिन भाषाओं को मैं इतना प्यार करता हूं उनका अध्ययन उसी जगह जाकर करूं। यह अभाव केवल अवसर का ही है, जो कभी न कभी मुझे अवश्य मिलेगा।” कार्यक्रम में चैनई निवास जमनादास सेवग कहा कि उन्होने जैन ग्रन्थों का इटली की भाषा में अनुवाद किया। समारोह में विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकार जानकीनारायण श्रीमाली ने कहा कि भाषा के प्रति उनकी सदासयता अनुकरणीय रही है, श्रीमाली ने कहा कि डॉ. तैस्सितौरी ने बिना किसी शिक्षक की सहायता के अनेक भाषाओं को सीखा । कार्यक्रम में चिर्तकार योगेन्द्र पुरोहित, मुक्ति संस्था के बृजगोपाल जोशी, शिक्षाविद् भगवानदास पडिहार, नागेश्वर जोशी, ऋषिकुमार अग्रवाल, डॉ.एम.एल.व्यास, जुगलकिशोर पुरोहित, रामेश्वर बाडमेरा, नृसिंह भाटी ‘नीशुÓ, जनमजये व्यास, श्री मोईनूदीन कोहरी, श्री महेन्द्र बरडिया, पी.सी. राखेचा, पुखराज सुराणा (मुंबई), सहित अनेक लोगो ने पुष्पाजंलि की। अंत में संगीतझ डॉ. मुरारी शर्मा ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया ।

राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण डॉ टैस्सीटोरी ने किया

बीकानेर भाषा मानव विकास एवं उसकी सभ्यता-संस्कृति को संवारने का महत्वपूर्ण उपकरण तो है ही साथ ही व्यक्ति की मातृभाषा उसकी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसी मातृभाषा राजस्थानी को स्वतंत्र भाषा पहचान देने एवं भाषा वैज्ञानिक स्तर पर व्यारण तैैयार कर 1914 में महान् ईटालियन विद्वान एवं राजस्थानी पुरोधा लुईजि पिऔ टैस्सीटोरी ने महत्वपूर्ण काम किया जिससे राजस्थानी की मान्यता की बात परवान चढती गई। यही केन्द्रिय भाव आज प्रात: डॉ टैस्सीटोरी समाधि-स्थल पर उनके 131वें जन्म दिवस को समर्पित चार दिवसीय ‘भाषा समारोहÓ के उद्घाटन अवसर पर उभरकर सामने आए। प्रज्ञालय एवं राजस्थानी युवा लेखंक संघ द्वारा आयेाजित इस समाोह के प्रथम दिन डॉ टैस्सीटोरी को नमन करते हुए उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई और साथ ही महत्वपूर्ण आयोजन भाषा संकल्प पर परिसंवाद आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भवानी शंकर व्यास ने कहा कि राजस्थानी के सच्चे सपूत थे। जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से राजस्थानी भाषा, साहित्य, पुरातत्व, शौध एवं संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर राजस्थानी भाषा को विश्व पटल पर पहचान दिलाई। व्यास ने आगे कहा कि आपने 33 पुस्तके रची एवं बहुत शोधग्रंथो पर काम किया। साथ ही राजस्थानी के भंडार को सामने लाने के लिए कुशल संपादन भी किया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता राजस्थानी मान्यता आन्दोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी ने 1914 में ही राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण बीकाणै की धरा पर अपने सृजनात्मक एवं साहित्यक कार्यो के माध्यम से कर दिया था। वे, राजस्थानी के अमरसाधक तो थे ही वहीं विश्व बंधुत्व के सेतु बने।

संकल्प परिसंवाद के बोलते हुए कथाकार इंजि. आशा शर्मा ने कहा कि राजस्थानी मान्यता के लिए हर स्तर पर संघर्ष होना चाहिए वहीं साहित्यकार मधुरिमा सिंह ने कहा कि अब राजस्थानी संवैधानिक मान्यता शीघ्र मिलनी चाहिए। वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने कहा कि टैस्सीटोरी के कार्यो का सही मूल्यांकन तभी है जब राजस्थानी प्रदेश की दूसरी राजभाषा बने एवं शिक्षा का माध्यम अन्य भाषाओं के साथ बने। इसी परिसंवाद में कवि गिरीराज पारीक ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी के कार्यो को जन-जन तक ले जाने में आयोजक संस्था साधुवाद की पात्र तो है ही ऐसे में आम राजस्थानी सर्मथकों को सच्चे मन से मान्यता की बात करनी होगी न कि नाम के लिए वहीं संकृतिक गोर्वधन चौमाल ने कहा कि समर्पित भाव मातृभाषा के आंदोलन को बल देगा। हमेे इस ओर काम करना होगा इसी क्रम में राजस्थानी समर्थक घनश्याम सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि टैस्सीटोरी के कार्य और भाषा मान्यता के लिए हमें संकल्पित होकर आगे आना होगा। इसी तरह कवि प्रदीप चौधरी ने कहा कि आज का भाषा संकल्प महत्वपूर्ण है।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी ने समाधि स्थल की दुर्दशा पर रोश प्रकट करते हुए नगर विकास न्यास के कनिष्ठ अभियन्ता से डॉ टैस्सीटोरी समाधि स्थल को भव्य बनाने का सुझाव दिया। ताकि इस महान पुरोधा की समाधि स्थल पयर्टन की दृष्टि से समर्ध हो सके। कार्यक्रम में अपनी पुष्पांजलि एवं भावांजलि अर्पित करते हुए एहसान अली, शोहेल अहमद, दिनेश शर्मा, तोलाराम सारण, समीर खां, सतीश शर्मा, याकूब खां किसन सांखला, सहित सभी ने राजस्थानी को रोटी-रोजी एवं शिक्षा से जोडने की बात पर बल देते हुए कहा कि यही डॉ टैस्सीटोरी को सच्ची श्रृद्धांजलि होगी। डॉ टैस्सीटोरी को समर्पित चार दिवसीय भाषा समारोह के दूसरे दिन आज 14 दिसम्बर 2018 को शाम 5 बजेे नालन्दा स्कूल के सृजन सदन में राज्य स्तरीय ‘पुस्तक से मिलिएÓ कार्यक्रम डॉ मदन सैनी एवं अविनाश व्यास के आतिथ्य में होगा।(PB)