डॉ भीमराव अंबेडकर विधि विवि कुलपति की डिग्रियां बनी मुसीबत
जयपुर( हरीश गुप्ता )। डॉ भीमराव अंबेडकर विधि विवि कुलपति चर्चाओं के दौर से मुक्त ही नहीं हो पा रहे। चर्चाओं के दलदल में उनकी डिग्रियों ने जलकुंभी का काम कर दिया। कहीं ऐसा न हो पूर्व की भांति इस बार भी डॉ देवस्वरूप रणछोर बन जाए। गौरतलब है, हमने 29 नवंबर के अंक में ‘आखिर राज्यपाल ने मानी, वीसी की मनमानी’ शीर्षक से एक समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किया था। समाचार में बताया गया था कि डा. अंबेडकर विधि विवि के कुलपति डॉ देवस्वरूप डिग्री के मामले में घिरते नजर आ रहे हैं और राज्यपाल ने उनकी डिग्रियों की जांच के लिए हाईपावर कमेटी गठित कर दी है। जानकारी के मुताबिक, कमेटी ने डॉ देवस्वरूप से डिग्रियों के मामले में 10 दिनों में जवाब देने के लिए कहा था। साथ में यह भी हिदायत की थी कि समय पर जवाब नहीं दिया तो स्वयं दोषी माने जाएंगे। उधर सूत्र बताते है कि डॉ देवस्वरूप ने कमेटी से दो महीने का समय मांगा है। इस हिसाब से देखा जाए तो डॉ देवस्वरूप नियम से तो दोषी हो ही रहे है। सूत्रों की मानें, तो चर्चाएं जोरों पर है, ‘डॉ देवस्वरूप अब पूरी तरह से घिर चुके हैं।’ ‘… डॉ साहब के पास मैदान छोड़ने के अलावा अब कोई रास्ता नहीं बचा।’ सूत्रों की मानें तो डॉ देवस्वरूप ने तीन वर्षीय एलएलबी व पीएचडी एक साथ की। यह भी एक आश्चर्य की बात है। ऐसे ही, डी.लिट, जिसमें 100 दिन तो उसी जगह रहना जरूरी है जहां संस्थान स्थित है वह भी किसी सरकारी नौकरी में रहते हुए और बिना कोई अवकाश लिए। जब डॉक्टर साहब ने यह डिग्री की थी उस समय वह दिल्ली में मौजूद थे। शक के दायरे में कैसे : दरअसल डॉ देवस्वरूप जब राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति बने उस समय अपने बायोडाटा में एलएलबी का उल्लेख किया था, लेकिन जब डॉ भीमराव अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय के कुलपति बने तब बायोडाटा से एलएलबी गायब रखी। इस पर शक गहरा गया और इनकी डिग्री को लेकर एक प्रो. ने शिकायत की। शिकायत पर राज्यपाल ने हाईपावर कमेटी बनाई थी। साथ ही डॉक्टर देव स्वरूप की मान्यता को लेकर भी कोर्ट में याचिका दायर है जिस पर फैसला बाकी है। सीएम को भी रखा झांसे में : चर्चाएं जोरों पर है, ‘डॉ देवस्वरूप ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को झांसे में रखा और उन तक डिग्रियों की हवा तक नहीं लगने दी। उन्होंने सीएम को दीक्षांत समारोह में बुलवा भी लिया और स्वयं की प्रशंसा भी करवा ली। इधर चर्चा यह भी है कि जब कुलपति ही ऐसा होगा, तो उस विश्वविद्यालय का क्या होगा? यह अत्यंत गंभीर विषय है।