भारती भाई।

भाद्रपद की अमावस्या को जब धरती पर चारों तरफ अंधकार छाया होता है और माता पिता कारा ग्रह में कैद होते हैं ऐसी जीवन की घोर विषम परिस्थितियों में जन्म लेने का नाम कृष्ण है। जिसके नाम और तप से कारागृह के दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं और उफनती यमुना जिन्हें नमन कर वापस शांत हो धीर मंथर हो बहने लगती है जो राजा के घर में जन्म लेकर भी स्वयं गैया चराने निकल पड़ते हैं और आमजन रूपी ग्वालियो को अपना सखा मित्र बनाते हैं। जो पांव में घुंघरू बांध कर रखते हैं हाथ में मुरलिया धारण करते हैं राज कुल में जन्म लेकर भी सिर पर मोर पंख का मुकुट सजाते हैं जो सर्वत्र ही लोक संस्कृति के वाहक दिखते हैं जो जमुना में नहाते हैं उसके तट पर लीला करते हैं नाचते हैं आमजन को साथ रखते हैं और संदेशा देते हैं कि लोक जीवन में जो सच है वही सर्वोपरि है उसकी समता किसी से नहीं हो सकती उस समरसता उस यथार्थता उस सहजता का नाम कृष्ण है।
जिनकी बांसुरी की तान पर गोरियां थिरकती हैं नाचती हैं पूरा ब्रज प्रदेश जिनके लीला रस में डूबा रहता है उसका नाम कृष्ण है जिनके लोक जीवन के चलते फाग बरसता है जीवन के रंग भरे जाते हैं उसका नाम कृष्ण है। जो लालित्य से परिपूर्ण है जिसके एक हजार नाम गुण स्वरूप सौंदर्य के समकक्ष जगत की दूसरी कोई वस्तु हो नहीं सकती, जो राजा होकर स्वयं किसी कुबड़ी स्त्री का उपचार कर उसे ठीक करते हैं उसका नाम कृष्ण है जो सखा मित्र सुदामा के लिए तीन लोक का राज भेंट कर देने को उद्यत हैं जिन्हें तनिक भी अपनी परवाह नहीं और जो अपने सखा के चरणों को अपनी अश्रु धारा से धोते हैं अमर रिश्तो की उस परंपरा का नाम कृष्ण है। जो युवराज हैं नंद बाबा के प्राण धन हैं फिर भी सिर पर सोने और रत्नों का मुकुट धारण नहीं करते बल्कि मोर पंख धारण करते हैं जो संदेशा देते हैं कि लोक जिसके साथ है वही नर राजा है वही मुकुट धारी है उसी का नाम सचमुच कृष्ण है। जिनके हाथ में सुदर्शन है जिस की ताकत के समक्ष पूरी दुनिया के योद्धा टिक नहीं सकते जो एक बार नहीं दो बार नहीं 99 बार शिशुपाल के अपराध क्षमा कर सकते हैं उस महान सामर्थ्य का नाम कृष्ण है। जो दांपत्य सूत्र में न बंध कर भी मनसा वाचा कर्मणा राधा के हैं रहते द्वारिका में हैं लेकिन पूरी तरह मन राधा में रचा बसा है ऐसे अमर प्रेम के वाहक का नाम कृष्ण है। जिनकी लुभावनी छवि की कल्पना मात्र जीव को रस से भर देती है विश्वास से परिपूर्ण कर देती है और कूट-कूट कर जीवनी शक्ति का संचार करती है उसका नाम कृष्ण है। जो कुरुक्षेत्र के महाभारत में खड़े होकर भी शस्त्र नहीं उठाते जो अपने सखा के लिए सारथी होना स्वीकार कर लेते हैं तीन लोक के स्वामी होकर भी उसका नाम कृष्ण है। जिस द्रुपद सुता की लाज की रक्षा उसके महाबली पांच पति और कुल के वरिष्ठ जन गुरुजन भी रक्षा नहीं कर सके एक बार पुकारते ही अपनी बहन मानकर जिसकी रक्षा के लिए तुरंत उपस्थित हो जाने का नाम कृष्ण है। जो अहंकार दमन दम्भ को निर्मूल करने के लिए और लोक आस्था लोक हित की रक्षार्थ गोवर्धन को उंगली पर उठा लेते हैं उस महा संकल्प का नाम कृष्ण है। अर्थात इस जगत में कृष्ण के से अधिक और कुछ भी नहीं। यदि कुछ है तो वह कृष्ण हैं उनके साथ उनकी पथ अनुगामिनी परम प्रिया राधा हैं। निरंतर जिनके सुमरन से रिद्धि सिद्धिया कदमों में लौटती हैं जिनके स्वरूप दर्शन से त्रिलोक दर्शन अपने आप होते हैं और जीव परम पद को प्राप्त होता है उस महा तत्व का नाम कृष्ण है। तभी तो कृष्णम वंदे जगत गुरु कहना मानना सार्थक है।