संघ प्रमुख ने किया आह्वान – सेवा भाव से पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है

जयपुर में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा संगम का शुभारंभ

जयपुर, । जब देश का सर्वांग परिपूर्ण और स्वस्थ होगा तभी भारत विश्वगुरु बनेगा।

यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शुक्रवार को राजस्थान के जयपुर में जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में सेवा भारती के तीसरे राष्ट्रीय सेवा संगम के उद्घाटन अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार शरीर का कोई अंग दुर्बल होता है तो पूरा शरीर पीड़ा भोगता है और पिछड़ता है, उसी प्रकार यदि देश का कोई समाज दुर्बल, पिछड़ा है, ऐसी स्थिति में पूरा देश पीड़ा भोगता है, पिछड़ता है। उन्होंने कहा कि सेवा का भाव और उसे कृति रूप में उतारने का कार्य ही इस कमी को दूर कर सकता है।

डॉ. भागवत ने सभी से संकल्प लेने को कहा कि यह कार्य हमें करना है क्योंकि यह समाज हमारा अपना है। हमें देश के किसी भी अंग को दुर्बल, पिछड़ा और नीचा नहीं रहने देना है।

उन्होंने कहा कि सेवा का भाव करुणा से जुड़ा है और यह भाव त्वरित पैदा होता है। सेवा भारतीय सनातन संस्कृति का गुण है। मनुष्य की मनुष्य के प्रति सामान्य अभिव्यक्ति है। सेवा कोई स्पर्धा नहीं है, न ही काम निकालने जैसा कार्य है।

पिछले दिनों हुई सी-20 समूह की बैठक का सन्दर्भ देते हुए डॉ भागवत ने कहा कि आज संवेदना के आधार पर सेवाकार्य की आवश्यकता की चर्चा वैश्विक स्तर पर हो रही है। सी-20 में सम्पूर्ण विश्व के सम्बन्धों में करुणा के आधार को भी शामिल करने पर विचार हुआ है। इस चर्चा में भारत से मां अमृतामयी, नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी और निवेदिता भिड़े ने भी इस विचार को क्रियान्वित करने पर बल दिया। उन्होंने सभी समाजों से आह्वान किया कि सेवा के प्रति दृढसंकल्पित होकर निःस्वार्थ भाव से अग्रसर हों।

डॉ. भागवत ने कहा कि सेवा भाव से पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है। ऐसा तभी संभव है, जब सेवा का कार्य समाज व्यापी अभियान बन जाए। हमें ऐसा प्रयास करना है। उन्होंने कहा कि लोग अपनी चुनौतियों को और समस्याओं को समाप्त कर, सम्पूर्ण विश्व को भक्ति, ज्ञान और कर्म का उदाहरण प्रस्तुत करें। साथ ही सेवा करने वाली सज्जन शक्ति एक समूह बनकर परस्पर मिलकर चले। इससे हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।

सरसंघचालक ने जोर देते हुए कहा कि मेरे पास जो है, वह सबके लिए है। सब में मैं हूं और मुझमें सब हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सेवा के द्वारा सबको अपने जैसा बनाना हमारा परम उद्देश्य होना चाहिए। इससे समाज का हर भाग स्वावलंबी होगा और देश में कोई पिछड़ा अथवा दुर्बल नहीं रहेगा।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में एक घुमंतू समाज हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। वो झुके नहीं। वे कहीं न कहीं घूमते रहते हैं। अंग्रेजी शासकों ने उनकी पहचान मिटा दी। दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के बाद भी उनकी वही स्थिति रही। उनके पास कोई मतदात पहचान पत्र नहीं है, राशन कार्ड नहीं और डोमेसाइल भी नहीं है। संघ की उन पर नजर पड़ी तो वहां भी सेवा कार्य शुरू कर दिए गए।

समारोह में पीरामल ग्रुप के अध्यक्ष अजय पीरामल ने रहीम दास जी का दोहा, तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥, उध्दृत करते हुए कहा कि इसी उद्देश्य को उन्होंने पीरामल फाउंडेशन में उतारने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन के उद्देश्य भगवद गीता से प्रेरित हैं। जनजाति समाज की सेवा में भी फाउंडेशन कई कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष भी आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य को लेकर फोकस करने का संकल्प व्यक्त किया है। रामायण में गिलहरी का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने सभी से सेवा के लिए सामर्थ्य अनुसार अग्रसर होने का आह्वान किया।

राष्ट्रीय संत बालयोगी उमेश नाथ महाराज ने निषादराज और माता शबरी के प्रसंग को उध्दृत करते हुए कहा कि भगवान राम तब सामाजिक समरसता की सीख दे गए जिसकी आज हमें आवश्यकता महसूस हो रही है। उन्होंने समाजों में रोटी-बेटी के व्यवहार को बढाने का आह्वान करते हुए कहा कि यह छुआछूत और भेदभाव को दूर करने का महत्वपूर्ण कदम होगा। उन्होंने कहा कि देश के हर जाति पंथ का व्यक्ति किसी न किसी महापुरुष का वंशज है ऐसे में देश में छुआछूत की बात ही बेमानी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख राजकुमार मटाले ने कहा कि नानाजी देशमुख एक मंत्र दे गए कि अपने लिए नहीं अपनों के लिए जियो। जहां संगम होता है वहां अध्यात्म ऊर्जा बढ़ती है जो सद्कार्यों की प्रेरणा बढ़ाती है। उन्होंने आह्वान किया कि पीड़ित को भगवान मानकर यह विचार करें कि हमें भगवान की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

इस अवसर पर अतिथियों ने सेवा साधना पत्रिका का विमोचन किया। इस पत्रिका का विषय स्वावलंबी भारत रखा गया है।

स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में उद्योगपति नरसीराम कुलरिया ने स्वागत उद्बोधन दिया। संचालन राष्ट्रीय सेवा भारती की महासचिव रेणु पाठक ने किया। राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष पन्नालाल भंसाली ने आभार प्रकट किया।

सेवा संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह मुकुंद सी आर, विश्वगुरु महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द और विश्व जागृति मिशन संस्थापक आचार्य सुधांशु महाराज समेत प्रमुख संतगण और सेवा कार्यों से जुड़े लोग उपस्थित थे।

सफलता की 100 कहानियों का साक्षी सेवा संगम

जयपुर के जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में स्वावलंबी भारत, समृद्ध भारत की थीम पर हो रहा सेवा संगम सफलता की 100 से अधिक कहानियों का साक्षी बना है।

‘नर सेवा नारायण सेवा’ के ध्येय वाक्य के साथ वंचित, पीड़ित, उपेक्षित और अभावग्रस्त बंधुओं के उत्थान में 20 वर्षों से जुटे सेवा भारती का यह तृतीय महासंगम है। सेवा भारती 43 हजार 45 सेवा परियोजनाओं द्वारा समाज को सशक्त, समरस बना एकता के सूत्र में बांधने के लिए प्रयासरत है। देश के 117 जिलों में 12 हजार 187 स्वयं सहायता समूह संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें लगभग एक लाख 20 हजार सदस्य हैं। इन समूहों में 2 हजार 451 समूह स्वावलंबन के कार्यों में सक्रिय हैं। देश के 55 जिलों में स्वयं सहायता समूह वैभवश्री रचना में संचालित हो रहे हैं। इनमें 27 हजार 494 सदस्य हैं। सेवा भारती का उद्देश्य उससे जुड़े स्वैच्छिक संगठनों के सामूहिक प्रयासों के बीच तालमेल स्थापित करके एक सामंजस्यपूर्ण, सक्षम और आत्मनिर्भर समाज और एक समृद्ध भारत का निर्माण करना है।

उल्लेखनीय है कि सेवा संगम में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन, सामाजिक क्षेत्र में किए गए श्रेष्ठ कार्यों की प्रदर्शनी भी लगी है।

खासतौर से गोसेवा प्रदर्शनी में गोबर और गोमूत्र के प्रयोग से बने उत्पाद सभी को आकर्षित कर रहे हैं और हतप्रभ भी कर रहे हैं कि गोबर और गोमूत्र से इतने तरह के उत्पाद भी बनाये जा सकते हैं।

प्रदर्शनी में स्वावलंबी भारत, मातृशक्ति सशक्तीकरण, किशोरी विकास, ग्राम्य विकास, वोकल फॉर लोकल और आपदा प्रबंधन के विषय भी शामिल हैं।

सेवा भारती का पहला सेवा संगम वर्ष 2010 में बंगलूरू में आयोजित किया गया था। इसका ध्येय वाक्य ‘परिवर्तन’ था। वर्ष 2015 में दूसरा सेवा संगम नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इसका ध्येय वाक्य ‘समरस भारत, समर्थ भारत’ रहा।

सेवा संगम में स्वावलंबी भारत, समृद्ध भारत के स्वप्न को यथार्थ में बदलने पर चिंतन हो रहा है। समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए सेवा भारती को विश्व भर में सहयोग मिल रहा है।