रोहतक।(अनूप कुमार सैनी) बांगर की चौधर किसके हाथ में होगी जाट या फिर नान जाट के? इसका फैसला जीन्द उपचुनाव करेगा। यही कारण है कि हरियाणा की जनता का ध्यान जींद के उपचुनाव पर है। सभी पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ चुनावी समर में कूद चुकी हैं। इधर पूर्व सांसद सुरेन्द्र सिंह बरवाला समेत भाजपा के दिग्गज नेताओं में टिकट बंटवारे को लेकर भी भारी नाराजगी है, जिससे भाजपा प्रत्याशी की जीत की राह आसान नहीं रह गई है।
जीन्द का यह उपचुनाव भाजपा के लिए नाक का सवाल बन चुका है क्योंकि प्रदेश में मौजूदा सरकार भाजपा की है। ऐसे में अगर भाजपा प्रत्याशी हारा तो बड़ी किरकिरी होगी। जो निगम का चुनाव से मजा आया था, वो स्वाद खराब हो जाएगा।
दूसरी तरफ जजपा जिसने अभी अपना अस्तित्व खड़ा किया है, उसकी यह पहला चुनावी परीक्षा है। युवा वोटर के आसरे राजनीति चमकाने वाले दुष्यंत चौटाला के लिए इस चुनाव में चुनौती जरूर रहेगी। वैसे दुष्यंत को हराने के लिए कांग्रेस ने चक्रव्यूह तैयार कर दिया है।


कांग्रेस ने फिर से उसके सामने एक बार से फिर उनके सामने रणदीप सुरजेवाला को खड़ा कर दिया है, जिसने दुष्यंत के दादा चौ. ओपी चौटाला को उस वक्त हराया था, जब उनकी प्रदेश में तूती बोलती थी। रणदीप ने नरवाना से हराया, जहां से चौटाला सीएम थे। इसके बाद सुरजेवाला चर्चा में आए थे। एक बार फिर आमने सामने चौटाला परिवार और सामने सुरजेवाला है। फर्क इतना है कि इनैलो के दो फाड़ होने के बाद जजपा में ओपी चौटाला का पौता है। इसके बाद इनैलो का वर्चस्व भी इस चुनाव से है क्योंकि यह सीट इनैलो के विधायक की मौत के कारण खाली हुई है।
मोदी लहर और कांग्रेस लहर में भी यह सीट जींद की जनता ने इनैलो की झोली में डाली थी। इसके बाद राजकुमार सैनी के लिए भी यह चुनाव उनका नान जाट का फार्मूला भी आईना दिखाएगा क्योंकि वो जाट समुदाय पर मुखर रहते हैं। अब वो नान जाट उनको कितना समर्थन करेंगे, यह समय बताने का वक्त आ गया है।
वैसे नान जाट को भाजपा भी भुनाने वाली है क्योंकि उसके सामने सभी पार्टियों ने जाट चेहरा खड़े किए हुए हैं। जींद का चुनाव बड़ा रोमांचक हो चुका है। पूरा प्रदेश की जनता ओर सियासतदानों की धड़कन तब तक धड़क रही थी, जब तक पार्टियों ने उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे। अब धड़कन ओर तेज है क्योंकि रण में धुरंधर नेताओं ने रणभेरी बजानी आरम्भ कर दी है। कुरूक्षेत्र के बाद चुनावी रण जींद में नजर आएगा। जीन्द उपचुनाव राजनीति में एक नया अध्याय लिखने वाला है।


उपचुनाव के दगंल में कौन सी जाति जीत का सेहरा पहनाएगी

जींद में सभी पार्टियों ने धुरंधर नेताओं ने मैदान में उतार दिये है। सभी पार्टियों ने जातिगत समीकरण देखकर टिकट दी हैं। जींद विधानसभा में जाट वोट बैंक है इसलिए ज्यादातर पार्टियों ने जाट उम्मीदवार को उतारा है। जाट वोट के साथ पंजाबी वोट बैंक भी हार जीत में अहम रोल अदा करता है इसलिए भाजपा ने पंजाबी चेहरा के आसरे फतेह करने की सोची है।
लगभग 1.80 लाख वोट विधानसभा में हैं। जिसमें आधे शहरी तो आधे ग्रामीण वोट हैं। सबसे ज्यादा वोट जाट वोट 52 हजार हैं। 17 हजार वोट ब्राह्मण के हैं। 15 वोट पंजाबी वोट हैं। 13 हजार महाजनों के वोट हैं। 12 हजार सैनी वोट हैं तो वहीं अनूसूचित जाति के वोट लगभग 22 हजार के पास हैं। इन्हीं वोटों के सहारे समझने की कोशिश करते हैं, कौन सी पार्टी कौन सी जाति के सहारे नैया पार कर पाएगी।

सुरजेवाला की तेजतर्रार सोच ओर जजपा की युवा टीम कौन पड़ेगा भारी

इनैलो ओर बसपा का गठबंधन यदि अपनी मजबूती के सहारे चुनाव अच्छे ढंग से लड़ती है तो इनैलो जीत के करीब जा सकती है। इनैलो का जाट वोट बैंक पर कब्जा होता है तो वो परंपरागत वोट इनैलो को मिल जाए ओर साथ में बसपा दलितों के वोट डलवाने में सफल होती है। तो इनैलो ओर भाजपा में टक्कर हो सकती है।
हर पार्टी को जीत के लिए लगभग 30 से 35 हजार वोट का आंकड़ा चाहिए। यह आंकड़ा इसलिए दे रहे हैं क्योंकि वर्ष 2014 में हरिचंद मिड्ढ़ा कड़ी टक्कर के बाद 31,631 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर सुरेन्द्र बरवाला को 29374 वोट मिले थे। ऐसे में जाट वोट और दलित वोट दोनों का कुल प्रतिशत वोट देखें तो इनैलो मजबूत बनती है। ऐसे में इनैलो का पलड़ा भारी हो रहा है तो इनैलो को रोक पाना मुश्किल होगा।
भाजपा नान जाट के सहारे अपनी नैया पार कर सकती है। भाजपा का पंजाबी चेहरा जिसके वोट लगभग 15 हजार हैं और महाजन वोट जिसकी संख्या 13 हजार है, मिलाकर हुए 28 हजार के लगभग तो साथ में नान जाट वोट बैंक भी साथ दें तो मजबूत स्थिति में भाजपा रह सकती है।


अब कांग्रेस की बात करते हैं, जिनका उम्मीदवार रणदीप सिंह सुरजेवाला है, जोकि एक तेजतर्रार ओर अनुभवी राजनेता हैं। जिन्होंने अपनी राजनीति का लोहा मनवाया है। सुरजेवाला यदि शहरी वोट की तरफ सेंध लगा लेने के साथ में नरवाना और कैथल की रिश्तेदारों के सहारे वोट लेने में कामयाब हो जाते हैं तो जीत सकते हैं। जींद में कांग्रेस का वोट बैंक 10 से 15 हजार के आस पास है। ऐसे में 15-20 हजार वोट और चाहिएं, जो कांग्रेस की नैया पार कर सकता है।
कांग्रेस के लिए खास बात यह रहेगी कि सुरजेवाला बड़ा नेता हैं। जब बड़ा नेता चुनाव में आ जाता हैं तो कई बार जातिगत आंकड़े गौण हो जाते हैं। यदि ऐसा होता है तो वो सुरजेवाला के लिए सजींवनी का काम करेगा। दिग्विजय चौटाला के लिए सबसे ज्यादा जाट वोट बैंक हैं। वो यदि हिसार चुनाव के वक्त दुष्यंत चौटाला के पास इक_ा आया था तो यदि वही करिश्मा अब फिर हुआ तो दिग्विजय बाजी मारकर चुनाव जीत सकते हैं। इसके साथ में युवा वोट बैंक जो लगभग 65 प्रतिशत है, उसका स्नेह मिला तो भी दिग्विजय को चुनावी समीकरण बिगाड़ कर सब के बीच में से निकल सकता है।
चुनावी निष्कर्ष यही निकलता है कि जींद विधानसभा के उपचुनाव की जीत की चाबी जाटों के पास में है। जाट यदि तीन हिस्सों में बटंते हैं तो भाजपा मजबूत होती है। एकजुट होते हैं तो जजपा मजबूत होती है। जाट और दलित की सोशल इंजीनियरिंग कर लेती है तो इनैलो पार है। यदि रणदीप सुरजेवाला को जाट अपना नेता मान लेते हैं तो सुरजेवाला फतेह कर जाएंगे।
इन सब में लोकतंत्र सुरक्षा इनेकि राजकुमार सैनी का उम्मीदवार पवन आश्री को नान जाट वोट बैंक का लाभ मिलना मुश्किल है क्योंकि सैनी पार्टी की अभी ब्रांडिंग नही कर पाया है।
चौ.बीरेंद्र सिंह ने घोड़े की ढाई चाल चल दी तो चुनाव का ओर होगा खेल !
जींद के उपचुनाव में एक छुपे रूपस्तम हो सकते हैं यदि उन्होंने घोड़े की ढाई चाल चल दी तो चुनावी समीकरण बदल सकते हैं क्योंकि उन्हे बांगर की राजनीति का बड़ा अनुभव है ओर साथ में बांगर की राजनीति में हावी हैं। उस रूपस्तम को चौधरी बिरेन्द्र सिंह कहते है। अब देखना दिलचस्प रहेगा कि बिरेन्द्र सिंह क्या अपनी सियासत को सुरजेवाला या दिग्विजय के आगे सरेंडर कर देगा या फिर तुरप का इक्का चलकर बाजी पलट देंगें और जाट वोट दिलवा कर भाजपा की जीत को शानदार जीत में तबदील करवा सकते हैं। अभय सिंह चौटाला रणनीति बनाने मे चुके नही तो मुकाबला होता रोचक ओर जजपा भी यदि परिवारवाद से निकलते तो चुनाव की ओर होती दिशा!
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यदि जजपा सभी कार्यकर्त्ताओं को मीटिंग बुलवा कर एजुकेटिड व्यक्ति का नाम लेकर चुनाव लड़वाते और दिग्विजय सिंह की जगह किसी जजपा के कार्यकर्त्ता को टिकट देते तो यह संदेश जाता कि वास्तव में चौटाला परिवार की यंग जनरेशन ने हट कर राजनीति की है। साथ ही चौटाला परिवार परिवारवाद से बाहर निकले हैं। इस कदम से अब भी इस उपचुनाव में तो फायदा होता ही, साथ में आगामी चुनाव में भी पार्टी को इसका फायदा होता। अब लोगों में चर्चा है कि पार्टी का नाम भले ही बेशक बदल गया हो परन्तु परिवारवाद को जिंदा रखा है।
भाजपा में यदि सुरेंद्र बरवाला या राजेश गोयल को टिकट मिलती तो डबल फायदा होता। सीएम पंजाबी है तो उनके चेहरे को पंजाबी वोट करते जैसे निगम चुनाव मे जीते ऐसा ही लाभ उपचुनाव में मिलता और राजेश को महाजन के साथ में वोट मिल जाते ओर सुरेंद्र को देते तो जाट वोट मिलते ज्यादा मेहनत करनी ना होती। सबसे बाद में टिकट जाट की बजाए मांगेराम गुप्ता के परिवार को टिकट देती तो मुकाबला रोचक होता, ऐसे में अभय चौटाला रणनीति बनाने से चुके हैं।
इसके अलावा इनैलो नेता को भाजपा द्वारा टिकट देने से भाजपा के कट्टर नेताओं में भी इस बात को लेकर भारी नाराजगी है। उनका कहना था कि दूसरी पार्टी छोड़ कर भाजपा में हुए नेता को पार्टी ने टिकट देकर पुराने कार्यकर्त्ताओं का अपमान किया है। इस निर्णय से भाजपा कार्यकर्त्ताओं में जबरदस्त आक्रोश है।


साल 2014 के चुनाव में सिर्फ 1.86 प्रतिशत वोट के अंतर से हारी थी भाजपा !

जींद विधानसभा में 12 बार हुए चुनाव में 5 बार कांग्रेस, 4 बार लोकदल व इनेलो के विधायक बने। हरियाणा विकास पार्टी, एनसीओ के एक-एक बार व एक बार निर्दलीय विधायक बने हैं। इस सीट को कांग्रेस नेता मांगेराम गुप्ता के नाम से जाना जाता है। वे यहां से 4 बार जीते व 4 बार हारे। 2009 में इनेलो नेता हरिचंद मिढ़ा ने 36.40 प्रतिशत वोट लेकर उन्हें हराया। 2014 में मिड्?ढा ने इनेलो से ही भाजपा में आए सुरेंद्र बरवाला को 1.86 प्रतिशत यानी 2257 वोट से हराया। मिड्?ढा को 25.99 प्रतिशत वोट मिले थे।
इनेलो प्रत्याशी डॉ. हरिचंद मिड्ढा लगातार दूसरी बार यहां से विधायक चुने गए थे। डॉ. मिड्ढा ने भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र बरवाला को 2257 वोटों से शिकस्त दी थी। चुनाव परिणाम के अनुसार डॉ. हरिचंद मिड्ढा को 31631 वोट मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र बरवाला को 29374, कांग्रेस के प्रमोद सहवाग को 15267 वोट मिले और वे अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। हजकां के रमेश सैनी को 12246 बसपा के सुधीर गौतम को 13225 वोट हासिल हुए थे। (PB)