कार्यक्रम में पठित कविताओं पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली से आए कवि-आलोचक रवींद्र के. दास ने कहा कि वे मातृभाषाओं के महत्त्व को इस गोष्ठी के उपरांत अधिक गंभीरता से समझ सकें हैं वहीं उन्होंने कहा कि तीन पीढ़ियों की रचनाओं को सुनने के बाद उनको प्रतीत हुआ कि राजस्थानी प्रेम और ओज की भाषा है जिसमें छंद और मुक्त छंद की रचनाओं में पीढ़ी विकास के साथ ही संस्लिष्ठता का उत्तारोत्तर विकास भी देखा जा सकता है। हमें हमारी समर्द्ध लोक भाषाओं के लिए सामाजिक प्रसार के लिए लेखकीय दायित्व को समझना चाहिए।
राजस्थानी कवि गोष्ठी के अंतर्गत कवि नरपतसिंह सांखला ने छंदबद्ध कविताओं में जीवन यथार्थ को व्यंजित किया वहीं प्रमोद शर्मा ने भाषा और शब्द में प्रयोग का प्रर्दशन प्रकट करती कविताएं प्रस्तुत की तो कवि कमल रंगा ने ऐतिहासिक मिथकों की श्रृंखला से सजी कविताओं के माध्यम से उर्मिला आदि पात्रों के चरित्रों को नए ढंग से प्रस्तुत किया। कवि नीरज दइया ने कविता और रचना प्रक्रिया पर कविताएं प्रस्तुत की तो कवि-गीतकार राजेंद्र स्वर्णकार ने रंग थन्नै कै थूं लावैल सोनलिया परभात जैसे गीत से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। युवा कवि सुनील गज्जाणी, हरिशंकर आचार्य, गौरीशंकर प्रजापत ने विविध रंगों की कविताओं की बानगी प्रस्तुत की वहीं लूनकरनसर के आए युवा कवि गंगासागर सारस्वत एवं सींथळ से आए युवा कवि गज्जूदान चारण ने भी अपनी कविताओं का वाचन किया।
कार्यक्रम में मधु आचार्य ‘आशावादी’, डॉ. अजय जोशी, राजेंद्र जोशी, डॉ. मूलचंद बोहरा, संजय पुरोहित, डॉ. नमामी शंकर आचार्य, नवनीत पाण्डे आदि उपस्थित थे। गोष्ठी के अंत में पत्रकार-संपादक डॉ. राकेश सक्सेना के असामयिक निधन पर दो मिनिट का मौन रखा श्रद्धांजली अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन कवि डॉ. नीरज दइया ने किया तथा आत्माराम भाटी ने आभार ज्ञापित किया।