मुख्य अतिथि समाजसेवी हीरालाल हर्ष ने कहा कि डॉ. शर्मा ने पाश्चात्य संगीत की आंधी में भारतीय संगीत की मशाल को थामे रखा है। उन्होंने कहा कि डॉ. शर्मा ने अपने संगीत प्रयोगों से राष्ट्रीय स्तर पर बीकानेर का नाम रोशन किया है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् खुशालचंद रंगा ने कहा कि डॉ. मुरारी शर्मा ने संगीत शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित भाव से साधना की है। उन्होंने कहा कि डॉ. शर्मा एक संत की भांति अपने छात्र-छात्राओं को संगीत में दीक्षित किया है। कार्यक्रम में संगीतज्ञ गोविन्दनारायण राजपुरोहित ने डॉ. शर्मा के सम्मान में सुमधुर स्वरों में अपना गीत प्रस्तुत किया। ‘मुरारी की मुरली ने मधुर तान से जिंदा रखा है संगीत, वंदन करते हैं माँ भारती से बने रहो तुम सबके मीत। कार्यक्रम के संयोजक कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने डॉ. शर्मा के संगीत साधना को प्रेरणादायी बताया। लेखक अशफाक कादरी ने कहा कि डॉ. शर्मा अपने छात्र-छात्राओं के मान-सम्मान और प्रगति के आकांक्षी हैं। कवि-कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि डॉ. शर्मा का संगीत सृजन कालजयी है।
इस अवसर पर डॉ. मुरारी शर्मा ने स्वयं द्वारा संगीतबद्ध कवि बुलाकीदास बावरा की रचना ‘सुख के सपने अभी कुंवारेÓ सुनाई। डॉ. शर्मा ने जनकवि मो. सद्दीक का गीत ‘सांझ पड़ी, दिवलो जग्यो; चंदो चढ्यो आकाशÓ से कार्यक्रम में सुर बिखेरे। उन्होंने जगमोहन सक्सेना का गीत भी सुनाया।
कार्यक्रम में फागोत्सव कार्यक्रम के कलाकार गौरीशंकर सोनी, विनीत कुमार शर्मा, अमराराम, अश्विनी, जीतशिखा राजपुरोहित, सविता राजपुरोहित, मोनिका प्रजापत, जयश्री तरफदार, रामेश्वर प्रजापत, भूमिका पंवार, अनुष्का मारू, स्वाति शर्मा, सुभाशीष तरफदार की भूमिका की सराहना करते हुए स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए।
कार्यक्रम में वरिष्ठ चित्रकार मुरली मनोहर के माथुर, बृजरतन जोशी, नागेश्वर जोशी, मोहनलाल मारू, के के शर्मा, डॉ. कल्पना शर्मा, खुमराज पंवार, शशांक शेखर जोशी ने भी विचार रखे। सखा संगम के अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।