मानवत्व की दानवत्व पर विजय का प्रतीक - दशहरा पर्व
मानवत्व की दानवत्व पर विजय का प्रतीक - दशहरा पर्व
मानवत्व की दानवत्व पर विजय का प्रतीक – दशहरा पर्व
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शरद केवलिया

भारतीय संस्कृति में तीज- त्यौहारों का विशेष स्थान है। इन त्योैहारों ने आमजन के जीवन को न केवल उल्लास मय बनाया है बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शांे, धर्म, नैतिकता और मानवीय मूल्यों से भी जोड़े रखा है। भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं को इन त्यौहारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन्त रखा है।
भारत अनेकता में एकता वाला देश है। ऐसे कई त्यौहार हैं, जो सम्पूर्ण राष्ट्र में एक साथ, पूर्ण उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। ऐसा ही त्यौहार है- विजयादशमी या दशहरा। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। दशहरा पर्व- धर्म की अधर्म पर, पुण्य की पाप पर, न्याय की अन्याय पर तथा मानवत्व की दानवत्व पर विजय का प्रतीक है। यह शक्ति पूजा का पर्व है, इस दिन शस्त्रा पूजन भी किया जाता है।
मान्यतानुसार इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर, अत्याचारी रावण का वध कर धर्म व न्याय की रक्षा की थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक दुष्ट दैत्य को इसी दिन महाशक्ति दुर्गा ने परास्त कर तथा उसका वध करके देवत्व की पुनः प्रतिष्ठा की। इस अवसर पर 9 दिन पूर्व से ही स्थान-स्थान पर श्रीराम कथा का मंचन होता है तथा अन्तिम दिन विशाल मैदान में राम रावण के युद्धोपरान्त रावण, मेघनाद तथा कुम्भकरण के विशालकाय पुतलों में आग लगा दी जाती है।
उत्तर भारत में यह पर्व विजयशमी के रूप में तथा बंगाल में दुर्गा पूजा के नाम से मनाया जाता है। भक्तजन 9 दिन उपवास रखकर दुर्गा पूजा करते हैं तथा दशमी के दिन दुर्गा की प्रतिमाओं को पवित्रा नदियों में या सागर में विसर्जित कर देते हैं। गुजराती लोग इस पर्व पर गरबा नृत्य का आयोजन करते हैं। मैसूर का दशहरा देश भर में विख्यात है। मैसूर की गलियों, महलों को रोशनी से सज्जित किया जाता है तथा हाथियों का श्रंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भी दशहरा अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है।
विजयादशमी पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम सदा सात्विक प्रवृतियों को अपनायें तथा आसुरी वृत्तियों से हार न मानें। यह पर्व हमें काम, क्रोध, लोभ, चोरी, मोह, मद, अहंकार, आलस्य जैसे अवगुणों को त्यागने की प्रेरणा भी देता है।