Malabar Naval Exercise

OmExpress News / New Delhi / जानकारी के मुताबिक इस साल ऑस्ट्रेलिया भी मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास में शामिल हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया की इच्छा और मौके की नजाकत को समझते हुए भारत ने इसका मन लगभग बना लिया है, सिर्फ औपचारिक ऐलान होना बाकी है। (Malabar Naval Exercise)

गौरतलब है कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया पहले ही ‘क्वाड’ गठबंधन के तहत आपस में सहयोगी हैं, ऐसे में अगर इन चारों देशों ने भारत के नौसेना युद्धाभ्यास में भी हाथ मिला लिया तो हिंद महासागर से लेकर प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाइना सी तक में ड्रैगन की नकेल कसी जा सकती है। इस बात के संकेत इस बात से मिल रहे हैं कि अभी भारत ने इसे फाइनल भी नहीं किया है, लेकिन चीन की चतुराई ठिकाने आने लगी है और वह सचेत होने लगा है।

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युद्धाभ्यास इस साल के अंत में

भारत बहुत ही सक्रियता के साथ इस साल मालाबार नौसेना युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने पर विचार कर रहा है। यह युद्धाभ्यास इस साल के अंत में होने वाला है। अगर इसमें भारत ने ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने का फैसला कर लिया तो इसका मतलब ये होगा कि इसमें- चतुर्भुज गठबंधन (क्वाड्रिलैटेरल कोलिशन) या “Quad” के सभी सदस्य देश शामिल होंगे, जिसका गठन ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थायित्व के लिए हुआ था, ताकि इस क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद और सैन्य ताकत बढ़ाने वाली नीतियों पर लगाम लगाई जा सके।

गौरतलब है कि नवंबर 2017 में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने वर्षों से लंबित ‘क्वाड’ गठबंधन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री रास्ते को किसी भी ताकत के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए एक नई रणनीति के तहत आकार दिया था।

1992 से हो रहा है यह युद्धाभ्यास

क्वाड्रिलैटेरल मेकेनिज्म को ठोस आधार देने के लिए भारत अब मालाबार युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करने पर मंथन कर रहा है और संभावना है कि अगले एक-दो हफ्तों में इसपर आधिकारिक मुहर लग जाएगी। जाहिर है कि गलवान घाटी की घटना के बाद अगर भारत इस तरह के नौसेना युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करना चाहता है तो उसके बहुत ही दूरगामी सामरिक मायने हैं। इसलिए इस तरह की खबर की भनक लगते ही चीन की सुलगनी भी शुरू हो गई है।

बता दें कि भारतीय और अमेरिकी नौसेना के बीच हिंद महासागर में मालाबार युद्धाभ्यास की शुरुआत 1992 में हुई थी। बाद में 2015 में जापान भी इस युद्धाभ्यास का स्थायी सदस्य बन गया। जबकि, पिछले कुछ वर्षों से ऑस्ट्रेलिया भी इसका हिस्सा बनाने की इच्छा जता रहा है।

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भारत-ऑस्ट्रेलिया में हुआ अहम करार

यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बीते कुछ वर्षों में रक्षा और सुरक्षा दोनों ही क्षेत्रों में संबंध और बेहतर हुए हैं।

पिछले महीने ही दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी तब और बुलंद हुई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ऑस्ट्रेलियन समकक्ष स्कॉट मॉरिसन के बीच हुए ऑनलाइन सम्मेलन के दौरान लॉजिस्टिक सपोर्ट के लिए एक-दूसरे के मिलिट्री बेस तक पारस्परिक पहुंच को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ।

म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट के तहत दोनों देशों की सेनाएं पूर्ण रक्षा सहयोग के साथ-साथ मरम्मत और सप्लाई बरकार रखने के लिए एक-दूसरे के सैन्य बेस का इस्तेमाल कर सकेंगी।

 

चीन को चौकस रहने की जरूरत- ग्लोबल टाइम्स

भारत में जारी इस मंथन पर चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के आधिकारिक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भी प्रतिक्रिया दी है। पहले तो इसने माना है कि इसके जरिए भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना सामरिक प्रभाव बढ़ाना चाहता है, ताकि वह इस क्षेत्र का बड़ा पावर बन सके।

दूसरी तरफ इसने ये भी लिखा है कि, क्योंकि यह एक सैन्य अभ्यास होगा, इसका मतलब ये है कि चीन से नाराज बैठे ये चारों देश इसके जरिए चीन पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसे में चीन की सुरक्षा के लिए यह खतरा पैदा कर सकता है। इसलिए, चीन को चौकसी बढ़ाने की जरूरत है। क्योंकि, इसमें अमेरिका भी शामिल है, जो चीन को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। (जहाज की तस्वीरें सौजन्य- इंडियन नेवी)