श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हर कोई बड़े ही उत्साह के साथ मनाता है। इस दिन व्रत आदि कर रात 12 बजे कान्हा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। ऐसे में अगर आप कुछ उपाय करते हैं तो आपके व्रत का फल कई और गुना बढ़ जाता है। जिससे आपको सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्य पंडित संतराम के अनुसार, इस बार अष्टमी तिथि 2 सितम्बर की रात 08:47 पर लगेगी और 3 तारीख की शाम 07:20 पर खत्म हो जायेगी। हालांकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव 3 सितंबर की रात को ही मनाया जाएगा। क्योंकि अष्टमी तिथि का सूर्योदय 3 सितंबर को होगा। ऐसे में अगर आप कृष्ण जन्माष्टमी पर कर लेंगे तो धन की कमी तो दूर हो जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन गरीबों में या फिर किसी धार्मिक स्थल पर जाकर फल और अनाज दान करना चाहिए।
साथ ही पंडित को भोजन भी कराएं। ऐसा करने से आपके घर में धन की कमी तो दूर होगी ही साथ ही भविष्य में भी आपको धन की कमी कभी नहीं होगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा के बाल स्वरूप की मूर्ति पर शंख में दूध डालकर अभिषेक करें। इसके बाद मां कान्हा के साथ ही मां लक्ष्मी का भी पूजन करें। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार जरूर आएगा। माना जाता है कि, जन्माष्टमी पर जब आप कृष्ण पूजन करें तो उस समय कुछ सिक्के पूजा स्थल पर रख दें और उसके बाद पूजा करें। पूजा समाप्त होते ही इन सिक्कों को अपने पर्स में रख दें। ऐसा करने से लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होगा। आगामी 3 सितंबर को श्रीकृष्ण जनमाष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी। लेकिन क्या आपको पता है कि जब कान्हा को सर्पदंश योग लगा था तो उनकी रक्षा के लिए यह खास चीज कहां से लाई गई थी। नहीं तो चलिए यहां जान लेते हैं। श्री कृष्ण की लीलाओं का दीवाना तो हर कोई है। लेकिन उनके माथे पर लगा मोरपंख उनकी नटखट छवि को और भी नटखट बना देता है। लेकिन क्या आपको पता है कि उनके इस मोरपंख का कनेक्शन उत्तराखंड के हरिद्वार से रहा है।
किंदवंतियों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो उनकी कुंडली में सर्प दंश योग था। यानी जीवन में कभी ना कभी उनको नाग से खतरा हो सकता है। वहीं उनके नामकरण कराने के लिए आए कात्यायन ऋषि ने इस दोष को दूर करने के लिए मोरपंख लाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि, मनसादेवी पर्वत से निकलने वाले नारायण स्रोत के आसपास के इलाके से ही मोर का पंख लाना होगा। कहा जाता है कि, इस जगह का महत्त्व इसलिए है क्योंकि इस पर्वत पर नाग पुत्री मनसादेवी विराजमान हैं। मोर नाग का दुश्मन होता है इसलिए यह पंख अगर वहां से लाया जाएगा तो कान्हा का दोष खत्म हो जाएगा। वहीं हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर सबसे ज्यादा मोर पाए जाते थे। तब उन्होंने हरिद्वार के इसी पर्वत से पंख लाकर दिया। तभी से श्रीकृष्ण के मुकुट में मोरपंख विराजमान है।