बीकानेर । राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री कल्याण सिंह ने कहा कि भारत के किसान, ऋषियों-मुनियों और तपस्वियों से कम नहीं हैं। ये किसान माटी में पसीना मिलाकर सोना पैदा करने की क्षमता रखते हैं। हमें इनका मान-सम्मान करना चाहिए तथा इनकी समस्याओं को स्वयं की समस्याएं मानकर इनकी तकलीफों को दूर करने के प्रयास करने चाहिए।
श्री सिंह सोमवार को बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के तेरहवें दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है और यहां के किसान गर्मी, सर्दी, बरसात, भूख और प्यास की परवाह नहीं करते और दिन-रात कठोर मेहनत से सबका पेट भरते हैं। उन्होंने कहा कि एक कृषि प्रधान देश में यदि खेती घाटे का सौदा बनती है, तो कृषि विशेषज्ञों को इस विषय पर गंभीर चिंतन-मनन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि किसान का बेटा कर्ज में डूबा रहे, इससे बड़ी चिंता की बात नहीं हो सकती। लगातार बदलते वातावरण को उन्होंने कृषि विशेषज्ञों के लिए बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने बदलते वातावरण के अनुसार खेती की तकनीकों में बदलाव और उच्च गुणवत्तायुक्त बीज एवं खाद का उपयोग कर प्रति एकड़ उत्पादन किस प्रकार बढ़ाया जाए, इस विषय पर शोध की जरूरत प्रतिपादित की।
श्री सिंह ने कहा कि किसान की हालत सुधारनी है तो गांव की अर्थव्यवस्था को सुधारना होगा और यह देखना होगा कि गांव की मिट्टी की उर्वरा शक्ति किस प्रकार बढ़े? सरकारों को उत्पादन और उत्पादकता के लक्ष्य लेकर योजनाएं बनानी होंगी। उन्होंने कहा कि कृषि को अब सिर्फ जीविकोपार्जन के साधन के रूप में ही नहीं देखा जा सकता। कृषि में वाणिज्य का समावेश करना आज की आवश्यकता है। कृषि विशेषज्ञों को प्रशोधन, प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन की एक समग्र एवं सुदृढ़ नीति बनानी होगी। उन्होंने कहा कि युवाओं को कृषि के अलावा रोजगार के वैकल्पिक अवसर उपलब्ध करवाने होंगे। इसके लिए कृषि आधारित रोजगारपरक पाठ्यक्रम शुरू किए जाएं।
राज्यपाल ने कहा कि वैश्वीकरण द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिये कृषि विश्वविद्यालयों को नए-नए अनुसंधान करने होंगे व समाज को इसके लिए तैयार करना होगा। आज के युग में वही सफल होगा, जो नए परिवेश के अनुकूल बनेगा व उसमें समायोजित होगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान में फव्वारा व बूंद-बूंद सिंचाई पद्धतियों को अपनाना जरूरी हो रहा है। इस दिशा में अनुसंधान व शोध करने की जरूरत है। प्रदेश में शुष्क बागवानी की असीम संभावनाएं हैं। खेतीबाड़ी एवं पशुपालन को समग्र रूप में ले लिया जाए, तो बेहतर परिणाम आएंगे। उन्होंने कहा कि जैविक खेती पर भी विशेष बल देना होगा। उन्होंने कृषि क्षेत्रा की समस्याओं तथा चुनौतियों का सामना करने के लिए अनेक मोर्चो पर समुचित कदम उठाने की आवश्यकता जताई।
विकास की धुरी के रूप में हो वर्षा जल का संग्रहण एवं प्रबंधन
श्री सिंह ने कहा कि जल एक विशेष चुनौती है। आज देश में जितनी बारिश होती है, उसका मात्रा उनतीस प्रतिशत हिस्सा ही संग्रहित किया जाता है। ‘खेत का पानी खेत में‘, ‘गांव का पानी गांव में‘ कैसे रहे, इस पर विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्षा जल आम सहमति का संसाधन होता है। सहभागिता प्रक्रियाओं के माध्यम से इसका प्रबन्धन ग्रामीण विकास की धुरी के रूप में किया जाना चाहिए। मानव संसाधन तैयार करने, उसके अनुरूप सही योजनाएं बनाने और उनका पूर्णरूप से अनुपालन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का लगातार और अविवेकपूर्ण तरीके से दुरूपयोग और बढ़ती हुई आबादी, पर्यावरण पर भारी दबाव डाल रही है। पूरे देश में असामयिक वर्षा केवल एक छोटा सा उदाहरण है, जिसके फलस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष क्षति हम सबके सामने है।
सिर्फ रोजगार का साधन न बने शिक्षा
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा, मात्रा रोजगार पाने के साधन तक ही सीमित ना रहे। शिक्षित होकर अन्य लोगों को रोजगार देने के लिए सक्षम बनना होगा। कृषि विश्वविद्यालयों को अनुभव आधारित ज्ञान सृजन (एक्सीपीरियंस लर्निंग) के माध्यम से छात्रों में दक्षता बढ़ाने के प्रयास करने होंगे।उन्होंने कहा कि विशाल ग्रामीण मानव शक्ति के विकास के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों को प्रयास करने चाहिए। इस क्षेत्रा में महिला सशक्तिकरण को बढावा देना भी समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को उच्च कृषि शिक्षा प्रदान करने के साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित करने चाहिए। अपेक्षित दक्ष एवं कुशल मानवशक्ति के विकास की दिशा में विश्वविद्यालय को अहम् भूमिका निभानी होगी। कृषि का समग्र विकास करना और कृषि के उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने के लिए उचित व्यवस्था आज की आवश्यकता है।
विद्यार्थियों को दीं शुभकामनाएं, कहा करें नए लक्ष्य निर्धारित
राज्यपाल श्री सिंह ने विश्वविद्यालय के तेरहवें दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को शुभकामनाएं और विद्यार्थियों को अपनी सर्वाधिक क्षमता से ज्ञान एवं कौशल प्रदान करने के लिए शिक्षकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी भी चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए। विपत्तियों में कभी निराश न हों और जीवन में सदैव बड़े लक्ष्यों का निर्धारण करें। उन्होंने कहा कि सफल होने के लिए कभी परिश्रम में कमी न आने दें। युवा अगर सदैव सतत प्रयास करेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा जब बड़े से बड़े लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह प्रत्येक विद्यार्थी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण अवसर होता है।
पूरी दुनिया की नजर है भारत पर
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (शिक्षा) डॉ. अरविन्द कुमार ने कहा कि आज उत्पादन के दृष्टिकोण से पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। यह सुखद है कि आज भारत ने नई तकनीकों को स्वीकार किया है। किसानों में जागृति आई है तथा प्रति एकड़ उत्पादन और गुणवत्ता में इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में भी कृषि के क्षेत्रा में अनेक नवाचार हुए है तथा उत्पादन बढ़ा है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में जहां देश के उत्पादन में 3.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई वहीं राजस्थान में यह वृद्धि 7.9 प्रतिशत हुई है। उन्होंने कहा किकृषि शिक्षा की ओर लड़कियों का रूझान लगातार बढ़ रहा है। आज विश्वविद्यालयों में कृषि शिक्षा में दाखिला लेने वाली लड़कियों का प्रतिशत 41 तक पहुंच गया है। कईं विश्वविद्यालयों में तो यह आंकड़ा साठ प्रतिशत तक पहुंच गया है। उन्होंने केन्द्रीय कृषि अनुसंधान परिषद की विभिन्न योजनाओं, कार्यक्रमों एवं छात्रावृतियों के बारे बताया तथा कहा कि राजस्थान के सूरतगढ़ में फरवरी से शुरू हुई ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ एक अभिनव योजना है। इससे मृदा के स्वास्थ्य की जांच हो पाएगी तथा उत्पादन बढ़ाने की दिशा में यह योजना सहायक सिद्ध होगी।
स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बी आर छीपा ने कहा कि राज्य में कृषि के सतत विकास की दिशा में योगदान करने में विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण फसलों की नई किस्मों एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिए कार्यरत है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2012-13 में मूंगफली और सरसों की दो-दो अधिक उपज देने वाली किस्में विकसित कीं। विश्वविद्यालय द्वारा 5590 क्विंटल प्रजनक और 1940 क्विंटल सत्यापित चिन्ह्ति बीज का उत्पादन किया गया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013-14 के दौरान 4 सौ प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इनमें 9 हजार 168 प्रतिभागियों को लाभ पहुंचा है।
पच्चीस को स्वर्ण पदक, 1441 मिली डिग्रियां
इससे पहले दीक्षांत समारोह की शोभायात्रा ने पंडाल में प्रवेश किया। राज्यपाल एवं कुलाधिपति की अनुमति से दीक्षांत समारोह की शुरूआत हुई। इसके बाद दीप प्रज्ज्वलन और दीक्षांत वंदन किया गया। गृह विज्ञान संकाय की छात्राओं द्वारा राष्ट्रगान प्रस्तुत किया गया। कुलसचिव हरि प्रसाद पिपरालिया ने आगंतुकों का आभार जताया।
इस अवसर पर महापौर नारायण चौपड़ा,पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ए.के. गहलोत, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ चंद्रकला पाडिया, जिला कलक्टर आरती डोगरा, पुलिस अधीक्षक संतोष चालके, अतिरिक्त कलक्टर (प्रशासन) राजेश कुमार चौहान, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.एल.मेहरड़ा, प्रशिक्षु आइएएस आलोक रंजन, डॉ इंद्रजीत गुलाटी, डॉ भारती भटनागर, डॉ राजेश शर्मा सहित विश्वविद्यालय एवं प्रशासनिक कार्मिक मौजूद थे।