पर्यावरण विनाश को यदि रोकना है तो जैन सिद्धांतों का विश्व को अनुकरण करना ही होगा : निराले बाबा
बीकानेर। जैनाचार्य श्री दिव्यानन्द सूरीश्वर जी महाराज सा. (निराले बाबा) के पावन सान्निध्य में स्थानीय नाहटा मोहल्ला स्थित श्री जिन कुशल भवन में पर्यावरण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री लक्ष्मन दास ने कहा आज विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास से सारा जगत अभिभूत है। भौतिकता की दौड़ में बेतहाशा भागने वालों की होड़ सी लगी है। यह दौड़ हमें कहा गिराएगी इसका विचार करने का भी समय किसी के पास नहीं है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़, नियमों का उल्लंघन, मर्यादाओं का खण्डन, अनुशासनहीनता इन सब अप्राकृतिक कार्यों का ही परिणाम है सुनामी, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ इत्यादि। मानव प्रकृति के शाश्वत नियमों को अपनी क्षमता के बाहर जाकर चुनौती देता है और पर्यावरण के विभिन्न घटकों को प्रदुषित करता हैं।
इस अवसर पर कु. कोमल पारख, कु. साक्षी पुगलिया, विशाल नाहटा, पवन कोठारी, रोहित नाहटा, पीयूष, कंवर लाल सिपानी, विपुल नाहटा, मोहित नाहटा आदि ने अपने विचार रखे।
इस अवसर पर श्री निराले बाबा ने कहा कि आज जहां देखो पर्यावरण संरक्षण की चर्चा चल रही है। पर्यावरण विनाश को यदि रोकना है तो जैन सिद्धांतों का विश्व को अनुकरण करना ही होगा। केवल एक मात्र जैन धर्म ही संसार का पहला और अब तक का आखिरी धर्म है जिसने धर्म का मूलाधार पर्यावरण सुरक्षा को मान्य किया है। काश। जैन पर्यावरणीय सुरक्षा को अपनाया होता तो सुनामी लहरों में लाखों प्राणियों को अपनी जान माल से हाथ नहीं धोना पड़ता। २६ दिसम्बर २००४ की वह काली रात लाखों को बर्बाद कर गई। सुनामी लहरों ने जो कहर ढाया है उसे प्राकृतिक आपदा की संज्ञा दी गई है। यदि आज भी लोग जागरूक नहीं हुए तो सुनामी जैसी अनेक घटनाएं हमें देखनी पड़ेगी और हो सकता है कि कल हम भी इसके शिकार बन जाए। ऐसी प्राकृतिक विपदाओं का कारण स्पष्ट है प्रकृति का मनुष्य द्वारा दोहन। जैन दर्शन ने जिस सूक्ष्म दृष्टि से पर्यावरण संरक्षण का उल्लेख किया है यदि उसका परिपालन विश्व करें तो निश्चित ही सुनामी लहरों जैसे विभत्स दिल दहलाने वाली घटनाओं पर लगाम लग सकती है।
विश्व यदि पर्यावरण विनाश के दम घोटू जंजाल से सस्ते में निपटना चाहते हैं तो उसे जैन दर्शन में वर्णित पर्यावरण सुरक्षा की बातों पर गहनता से विचार करना चाहिए। जैन दर्शन में वर्णित प्रत्येक बात पर्यावरण सुरक्षा की ओर ध्यान आकृष्ट करती है। पर्यावरण है तो हम है अन्यथा कुछ भी नहीं हैं। पर्यावरण संरक्षण संवर्धन के प्रति हम सजग और जागरूक है। जैन धर्म की पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि विश्व के लिए अमूल्य धरोहर है।
इस अवसर पर विशिष्ट व्यक्तियों का सम्मान समिति की ओर से किया गया। इससे पूर्व शाम 6 बजे लक्ष्मीनाथ मंदिर पार्क में पौधारोपण का कार्य किया गया।