साहित्य अकादेमी के मुख्य पुरस्कार २०१७ से सम्मानित डॉ. नीरज दइया से डॉ. गौरीशंकर प्रजापत की बातचीत
साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्ति निसंदेह एक बड़ा सम्मान माना जाता है, ऐसे शुभ अवसर पर आप कैसा अनुभव कर रहे हैं?
सम्मान की घोषणा से निसंदेह हर्षित हुआ हूं, किंतु साथ ही मैं आश्चर्यचकित हूं। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस बार यह सम्मान मुझे मिलेगा। गत वर्ष हमारे ही शहर के श्री बुलाकी शर्मा और उनसे पहले श्री मधु आचार्य च्आशावादीज् को यह सम्मान मिला था, इसलिए सभी का यह विचार लगभग पक्का था कि इस बार राजस्थान के किसी अन्य क्षेत्र का कोई लेखक होगा। किंतु यह घोषणा इस बात को प्रमाणित करती है कि साहित्य अकादेमी के मूल्यांकन का आधार कोई क्षेत्र अथवा लेखक नहीं होकर कृति होती है। च्बिना हासलपाईज् राजस्थानी कहानी आलोचना के संदर्भ में बड़ी मेहनत और लगन से किया हुआ मेरा काम है। मैं समझता हूं कि यह मेरे आलोचना-कार्य का सम्मान है। मेरा मानना है कि इस सम्मान से मेरी जिम्मेदारी और जबाबदेही बढ़ी है।
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लेखन धर्मिता एवं साहित्य अकादेमी पुरस्कार के संदर्भ में आपके प्रेरणा स्रोत क्या रहे हैं?
मैं लेखक के रूप में कार्य करता रहा हूं और मेरा मानना है कि लेखक को पुरस्कार की आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए। हमारा काम बस बेहतर लिखना होता है, पुरस्कार तो लेखन और प्रकाशन के बाद की महज एक प्रक्रिया है। यह कहना भी आपका गलत नहीं है कि पुरस्कार से प्रेरणा मिलती है। मेरे पिता श्री सांवर दइया को साहित्य अकादेमी सम्मान १९८५ में मिला था। संभव है कि कहीं अवचेतन में ऐसे बीज रहे भी हो किंतु मैंने अपने पिता से सतत लेखन की प्रेरणा ग्रहण की है।
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ऐसा माना जाता है कि रचनाधर्मिता पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है, परिवेश को अगर व्यापक संदर्भों में देखें तो पारिवारिक परिवेश भी सम्मिलित होता है। इस विषय पर क्या कहना चाहते हैं?
परिवेश का व्यापक प्रभाव पड़ता है। मेरा आरंभिक लेखन पिता के पद्चिह्नों पर चलते हुए हुआ। विधाता को उनका अधिक साथ मंजूर नहीं था इसलिए वे १९९२ में इस संसार से विदा हो गए। उनके रहते मेरी केवल एक किताब १९८९ में श्री सूर्यप्रकाश बिस्सा ने प्रकाशित की थी। उनके नहीं रहने पर मैंने निश्चय किया कि पहले उनका साहित्य प्रकाश में आएगा। जब उनका अधिकांश लेखन लगभग पांच वर्षों में प्रकाशित हो गया तब मैंने अपना पहला कविता संग्रह च्साखज् १९९७ में प्रकाशित किया। पिता की स्मृति में नेगचार पत्रिका के तीन अंक भी प्रकाशित किए और प्रकाशन से जुड़ना उस समय की मांग थी।
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तो क्या आप स्वीकार करते हैं कि स्मृतिशेष सांवर दइया साहब के रचना-संसार से आपकी लेखनी प्रभावित हुई है?
एकदम। मैंने सदा उन्हें एक आदर्श लेखक के रूप में पाया है। मुझे याद आता है बचपन का वह दिन जब प्रार्थना-सभा में मेरे पिता के बारे में घोषणा हो रही थी। यह वह दिन था जब उनको कहानी संग्रह च्धरती कद तांई धूमैलीज् पर राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का पुरस्कार घोषित हुआ था। मैं उनको वर्षों पढ़ते-लिखते देखते रहा था, ऐसे में पता ही नहीं चला कि कब मैंने कलम थाम ली और पहली कविता लिखी। बाद में मुझे उनका मार्गदर्शन मिला और मैं लघुकथाकार के रूप में पहचाना जाने लगा। तब कुछ लोगों का यह भी कहना था कि मेरे पिता लघुकथाएं मेरे नाम से लिख रहे हैं, यह मेरे लिए बहुत बड़ा पुरस्कार था। मैं नया लेखक होकर भी इतना सधा हुआ समझा जाने लगा था।
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स्मृतिशेष दइया साहब के अतिरिक्त उनके समकालीन साहित्यकारों का कितना प्रभाव रहा है?
उनके मित्रों से भी मैं प्रभावित रहा। बचपन में हरदर्शन सहगल, महेशचंद्र जोशी, बुलाकीदास च्बाबराज् और कन्हैयालाल भाटी जैसे वरिष्ठ लेखकों का स्नेह मिला तो बाद में भंवरलाल च्भ्रमरज्, माणक तिवाड़ी च्बंधुज् और बुलाकी शर्मा आदि अनेक रचनाकारों से मेरा विमर्श होने लगा था। अकादमी द्वारा प्रकाशित कहानी संग्रह च्उकरासज् के संपादन के दौरान मुझे उनके साथ काम करने और खास कर समग्र राजस्थानी कहानी का काम देखने का सुअवसर मिला। संभवतः वर्ष १९८५ में उनको और हिंदी कहानीकार निर्मल वर्मा को एक साथ साहित्य अकादेमी पुरस्कार ने मुझे प्रेरणा दी होगी कि मैंने निर्मल वर्मा के कथा साहित्य को शोध के लिए चुना। शिक्षा ग्रहण करते समय मेरे अनेक गुरुजन कवि थे। मोहम्मद सद्दीक, अजीज आजाद, जगदीश प्रसाद च्उज्जवलज्, भवनीशंकर व्यास च्विनोदज्, पृथ्वीराज रतनू, सरल विशारद और प्रो. अजय जोशी आदि अनेक नाम है। डॉ, उमाकांत जी के मर्गदर्शन में शोध करते हुए मैं आलोचना के पथ पर व्यवस्थित रूप से बढ़ा। मेरा मानना है कि हमें हमारे वरिष्ठ लेखकों से बहुत कुछ सीखना चाहिए।
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मूलतः आप राजस्थानी साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित आलोचक हैं, वर्तमान में समग्रतः राजस्थानी साहित्य के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं?
मैं आलोचक हूं यह आपका मानना है। कुछ ऐसा भी कहते हैं कि मैं आलोचक ही नहीं हूं। कुछ मुझे कवि, अनुवादक, बाल साहित्यकार और संपादक के रूप में श्रेष्ठ मानते हैं। सबकी अलग अलग धारणा है। मैं जो भी हूं किंतु मैं वर्तमान राजस्थानी साहित्य को लेकर बहुत आशावादी हूं। एक समय था जब राजस्थानी में लोककथाओं का जमाबड़ा था, किंतु अब कहानी और आधुनिक कहानी के बाद उत्तर आधुनिक कहानियां हम देख सकते हैं। पहले अनेक विधाओं में बहुत कम सृजन होता था किंतु विगत वर्षों में देखें तो पता चलेगा कि विपुल सृजन हुआ है। राजस्थानी में नए रचनाकारों का पूरे विश्वास के साथ लिखना उत्साहजनक है। अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी है। अब राजस्थानी साहित्य के विकास के प्रति समाज भी जागरूक हो रहा है।
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समूचे प्रदेश में राजस्थानी की मान्यता का प्रश्न युगीन संदर्भ में नितांत आवश्यक अनुभूत किया जा रहा है, आपकी दृष्टि में कौन-कौन सी बाधाएं इस मध्य उत्पन्न हो रही है।
राजस्थानी की मान्यता एक ऐसा प्रश्न है जिसका जबाब पूरे प्रांत द्वारा दिया जा चुका है। राज्य सरकार के प्रस्ताव पर केवल केंद्र सरकार की मंजूरी लंबित है। आशा की जाती है कि हमारी जनभावनाओं को देखते हुए माननीय प्रधानमंत्री जी शीतकालीन सत्र में राजस्थानी मान्यता की घोषणा करेंगे। भाषा वैज्ञानिक आधारों पर राजस्थानी एक स्वतंत्र भाषा सिद्ध हो चुकी है। हमारी सारी बाधाएं दूर हो चुकी है अब हमें केवल सरकारी घोषणा का इंतजार है। यह मानता हूं कि सरकारी उदासीनता के चलते राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्य लंबे समय से बंद पड़े हैं। ऐसे में हमें एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी चाहिए। राजस्थान की जनता को अपनी भाषा के लिए मरणा मांडना होगा।
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छतीसगढ़ राज्य की विधान सभा मे छतीसगढ़ी भाषा को प्रस्ताव द्वारा मान्यता प्रदत्त कर दी, आज संपूर्ण राज्य में कामकाज की भाषा के रूप में प्रयुक्त हो रही है। राजस्थानी के लिए ऐसा क्यों नहीं हुआ है?
राजस्थानी के प्रति नेताओं में इच्छा शक्ति का अभाव है। वे जिस भाषा में वोट मांगते हैं जीतने के बाद उसे भूल जाते हैं। भाषा और साहित्य की तुलना में उन्हें अपनी सीट अधिक प्यारी है। भाषा का संबंध आत्मा से है और अगर हमें हमारी संस्कृति को बचाना है तो हमें छत्तीसगढ़ से प्रेरणा लेनी चाहिए। पूरा राजस्थानी समाज इन दिनों सोया हुआ है और ऐसे में मुझे मनुज देपावत का स्मरण होता है। जिन्होंने वर्षों पहले लिखा था- धोरावाळा देस जाग रे, ऊंठावाळा देस जाग, छाती पर पैणां पड्या नाग रे..। जिस दिन सभी राजस्थानी जाग जाएंगे, उसी दिन हमें हक मिल जाएगा।
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कहते हैं कि सफल व्यक्ति के पीछे पत्नी का सहयोग होता है आप क्या मानते हैं?
घर ही वह स्थल है जहां मैं शांतिपूर्वक लेखन कर सकता हूं। जाहिर है ऐसे में पत्नी और बच्चों का बड़ा त्याग रहा है कि वे लेखन के लिए अवकाश उपलब्ध कराते हैं।
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युवा रचनाकारों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
फिलहाल तो मैं खुद ही पचास की उम्र का युवा रचनाकार हूं। पुरानी पीढ़ी के रचनाकार जो मेरे पिता के समकालीन रहे हैं उनके सामने मुझे युवा बने रहने में ही गर्व महसूस होता है। मैं दावा तो नहीं करता किंतु प्रयास करता हूं कि अधिक से अधिक नए और पुराने साहित्य के बारे में जानकारी कर सकूं। लिखने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है और आलोचना विधा में पढ़ना पहली शर्त है। हम युवाओं को भाषा और साहित्य के प्रति गंभीरतापूर्वक ठोस कार्य करने हैं। युवाओं को भाषा और साहित्य के प्रति जिम्मेदारी और जबाबदेही समझनी चाहिए।
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डॉ. नीरज दइया का परिचय
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प्रकाशन सूची
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मौलिक पुस्तकें-
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• भोर सूं आथण तांई (लघुकथा संग्रह) १९८९ मुन्ना प्रकाशन, बीकानेर
• साख (कविता संग्रह) १९९७ नेगचार प्रकाशन, बीकानेर
• देसूंटो (लांबी कविता) २००० नेगचार प्रकाशन, बीकानेर
• आलोचना रै आंगणै (आलोचनात्मक निबंध) २०११ बोधि प्रकाशन, जयपुर
• जादू रो पेन (बाल साहित्य) २०१२ शशि प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर
• उचटी हुई नींद (हिंदी कविता संग्रह) २०१३ बोधि प्रकाशन, जयपुर
• बिना हासलपाई (आधुनिक कहाणी आलोचना) २०१४ सर्जना, बीकानेर
• पाछो कुण आसी (कविता संग्रह) २०१५ सर्जना, बीकानेर
• मधु आचार्य च्आशावादीज् के सृजन-सरोकार (आलोचना) २०१७ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
• बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (आलोचना) २०१७ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
• पंच काका के जेबी-बच्चे (व्यंग्य संग्रह) २०१७ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
• टांय टांय फिस्स (व्यंग्य संग्रह) २०१७ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
अनूदित पुस्तकें-
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• कागद अर कैनवास (अमृता प्रीतम की पंजाबी काव्य-कृति का अनुवाद) २००० नेगचार प्रकाशन, बीकानेर
• कागला अर काळो पाणी (निर्मल वर्मा के हिंदी कहाणी संग्रह का अनुवाद) २००२ साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
• ग-गीत (मोहन आलोक के कविता संग्रह का हिंदी अनुवाद) २००४ साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित।
• सबद नाद (भारतीय भाषाओं की कविताएं) २०१२ बोधि प्रकाशन, जयपुर
• देवां री घाटी (भोलाभाई पटेल के गुजराती यात्रा-वृत) २०१३ साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित।
• ऊंडै अंधारै कठैई (डॉ. नन्दकिशोर आचार्य की चयनित कविताएं) २०१६ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
• अजेस ई रातो है अगूण (सुधीर सक्सेना री की चयनित कविताओं का राजस्थानी अनुवाद) २०१६ लोकमित्र, दिल्ली
संपादित पुस्तकें-
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• मंडाण (युवा कविता) संपादक : नीरज दइया २०१२ राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
• मोहन आलोक री कहाणियां (संचै : नीरज दइया) २०१० बोधि प्रकाशन, जयपुर
• कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां (संचै : नीरज दइया) २०११ बोधि प्रकाशन, जयपुर
• देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां (संचै : नीरज दइया) २०१७ राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
• आधुनिक लघुकथाएं (संपादन) प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मन्दिर, नेहरु मार्ग, बीकानेर- ३३४००३
• नेशनल बिब्लियोग्राफी ऑफ इंडियन लिटरेचर (राजस्थानी : १९८१-२०००) साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
प्राप्त पुरस्कार एवं सम्मान
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• साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार २०१४
• राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी, बीकानेर से च्च्बापजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कारज्ज्
• नगर विकास निगम से च्च्पीथळ पुरस्कारज्ज् ।
• नगर निगम बीकानेर से वर्ष २०१४ में सम्मान
• अखिल भारतीय पीपा क्षत्रिय महासभा युवा प्रकोष्ठ बीकानेर द्वारा सम्मान- २०१४
• सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर से तैस्सितोरी अवार्ड- २०१५
• रोटरी क्लब, बीकानेर द्वारा च्च्खींव राज मुन्नीलाल सोनीज्ज् पुरस्कार-२०१६
• कालू बीकानेर द्वारा नानूराम संस्कर्ता राजस्थानी साहित्य सम्मान-२०१६
• कांकरोली उदयपुर द्वारा मनोहर मेवाड़ राजस्थानी साहित्य सम्मान-२०१६
• फ्रेंड्स एकता संस्थान बीकानेर द्वारा साहित्य सम्मान-२०१६
• दैनिक भास्कर बीकानेर द्वारा शिक्षक सम्मान- २०१६
• सृजन साहित्य संस्थान, श्रीगंगानगर द्वारा सुरजाराम जालीवाला सृजन पुरस्कार-२०१७
• राजस्थानी रत्नाकर, दिल्ली द्वारा श्री दीपचंद जैन साहित्य पुरस्कारज्- २०१७
• ओम पुरोहित च्कागदज् फाउण्डेशन हनुमानगढ़ द्वारा कागद सम्मान- २०१७
• साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान नाथद्वारा द्वारा हल्दीघाटी में साहित्य रत्न सम्मान- २०१७
• जिला लोक शिक्षा समिति, बीकानेर द्वारा साक्षरता दिवस पर सम्मान- २०१७
• मावली प्रसाद श्रीवास्तव सम्मान २०१७ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन द्वारा
• अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा सीताराम रूंगटा सीताराम रूंगटा राजस्थानी साहित्य पुरस्कार- २०१७
• केंद्रीय विद्यालय संगठन, जयपुर संभाग द्वारा क्षेत्रीय प्रोत्साहन पुरस्कार, २०१७
• गौरीशंकर कमलेश स्मृति राजस्थानी भाषा पुरस्कार- २०१७
• कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा डॉ. नारायणसिंह भाटी अनुवाद सम्मान
अन्य
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राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक पत्रिका च्जागती जोतज् का संपादन। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की उच्च माध्यमिक कक्षा की पाठ्यपुस्तक का संपादन।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर की राजस्थानी पाठ्यक्रम विषय-समिति के पूर्व-संयोजक।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी, बीकानेर की कार्यकारणी और सामान्य सभा के सदस्य।
च्च्कविता कोशज्ज् राजस्थानी विभाग सहायक-संपादक।
समन्वयक : राजस्थानी भाषा साहित्य संस्कृति विभाग, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी, दिल्ली।
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