प्रयागराज। कुंभ क्षेत्र में जहां रोजाना पांच लाख संत और श्रद्धालु भोजन कर रहे हैं, वहीं पर एक युवा संत आत्माबोधानंद पिछले 106 दिनों से अन्न जल त्यागकर जीवन और मृत्य के बीच झूल रहा है। इस तरफ पुलिस, प्रशासन और सरकार के अलावा संतों का ध्यान भी नहीं जा रहा है। एक दो शिविरों में जरूर हलचल हुई लेकिन यदि जल्दी कुछ नहीं किया गया तो राष्ट्र और धर्म की चिंता करने वाले संत से कुंभ क्षेत्र हाथ धो बैठेगा।
संत आत्मबोधानंद मूलरूप से केरल के रहने वाले हैं। पिछले करीब दो वर्ष से वह हरिद्वार स्थित मातृ सदन के संपर्क में आए। उन्होंने भौतिक सुख साधनों को त्यागकर राष्ट्र, गंगा की सेवा को हीअपना ध्येय बना लिया। उनकी मांग है कि गंगा की अविरलता को अनवरत किया जाए। लंबे समय से बिना अन्न-जल ग्रहण के उनकी स्थिति काफी नाजुक हो चुकी है। आत्मबोधानंद का जीवन सुरक्षित रहे, इसके लिए मंगलवार को छोटी नदियां बचाओ अभियान के शिविर से कल्पवासी इलाकों में जागरण यात्रा भी निकाली गई। अभियान के संयोजक ब्रजेंद्र प्रताप ङ्क्षसह, चित्रकार रंजना, जेपी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता पुतुल, कमलेश पटेल सहित काफी लोगों ने इसमें हिस्सा लिया।
इन सभी का कहना है कि सबसे जरूरी है आत्मबोधानंद का जीवन बचाना। इस संबंध में शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि गंगा की अविरलता जितना आवश्चयक है, उतना ही जरूरी एक संत के जीवन को सुरक्षित रखना भी है। कुंभ मेला प्रभारी स्वास्थ्य विभाग डा. एके पालीवाल ने कहा कि आत्माबोधानंद के इतने लंबे समय से अनशन पर होने की सूचना नहीं है, जल्द ही उनका परीक्षण कराया जाएगा। कुंभ क्षेत्र में किसी को स्वास्थ्य के प्रति दिक्कत नहीं आने दी जाएगी।