नेपाल (लूनकरण छाजेड)।अनुशासन किसी भी कठिनाई का सामना करने का अच्छा उपाय है। अनुशासन जीवन को संयमित बनाता है। जहां अनुशासन नहीं होता वहां अनपेक्षित समस्यायें आ सकती हैं। इसलिए व्यक्ति को जीवन में सदैव अनुशासन का पालन करना चाहिए। अनुशास्ता को स्वयं पर अनुशासन होना चाहिए।
उपरोक्त उद्गार अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने पावन प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने जीवन में अनुशासन बनाये रखने पर बल दिया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठे दिन अनुशासन दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा कि व्यक्ति अनुशासन में रहकर गलत रास्तों, दोष, कठिनाईयों इत्यादि से बच सकता है। यदि संसार में अपाय है तो उपाय भी है। आचार्य श्री ने अनुशासन के महत्व को बताते हुए कहा कि लोकतंत्र, राजतंत्र में न्याय के लिए दण्ड प्रक्रिया होती है जो अनुशासन का एक स्वरूप है। दण्ड प्रक्रिया की सहायता से अपराध पर नियंत्रण रख राज्य और देश को अनुशासित ढ़ंग से चलाया जा सकता है।
आचार्यप्रवर ने आगे कहा कि दण्ड प्रक्रिया प्राचीन काल में भी थी। यौगलिक काल में राजा नहीं होते थे, कुलकर व्यवस्था चलती थी जिसमें दण्ड के लिए तीन नीतियां बनाई गई थीं। हाकार, माकार और धिक्कार नीति। हाकार नीति में किसी गलती के बाद हा-हा कर देना, फिर माकार नीति जिसमें आगे से गलती न करने का निर्देष, बाद में यह धिक्कार नीति में परिवर्तित हो गयी जिसमें अपराधी को गलती के लिए धिक्कारा जाता था। कुलकर व्यवस्था के अंतिम कुलकर नाभि कुलकर थे। उनके पुत्र भगवान ऋषभ जिनको राजा बनाया गया और वहां से राजतंत्र की परंपरा चली। राजतंत्र हो या लोकतंत्र दोनों में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण होगा नहीं तो वह लड़खड़ा सकता है।
उन्होंने कहाकि सज्जनों की रक्षा करना, दुर्जनों को अनुशासित करना तथा प्रजा का संरक्षण व भरण-पोषण करना ये राजा, शासक और मुखिया के तीन कर्तव्य हैं। अनुशासन में सबसे बड़ी बाधा अहंकार होती है। अहंकार का प्रबल होना अनुषासन में कठिनाई पैदा कर सकता है। आचार्यश्री ने गुरुदेव तुलसी के ’’निज पर शासन फिर अनुशासन’’ सूत्र को अपनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पहले अपने आप को अनुशासित कर लें फिर दूसरों को हम अनुषासित कर सकतें हैं अन्यथा हमारा दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विद्यालयों में भी अनुशासन रखने से विद्यार्थी अच्छा बन सकता है।
कार्यक्रम मुनिश्री सुविधिकुमार, पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. मेश प्रसाद धमला सहित अन्य लोगों ने अनुशासन दिवस पर अपने विचार व्यक्य किये। फारबिसगंज की मंजूदेवी डागा ने आचार्यश्री से मासखमण की तपस्या का प्रत्याखान किया। इस अवसर पर उनके पुत्रों एवं परिवारजनों द्वारा गीत के माध्यम से तपस्विनी का अभिनंदन किया। संचालन मुनिश्री दिनेशकुमार ने किया।