नई दिल्ली। विवादित बाबरी ढांचा गिराने की साजिश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आडवाणी जोशी समेत 20 लोगों को नोटिस जारी किया है, ये याचिका हाजी महमूद ने दायर किया था। मामले की सुनवाई 4 हफ्ते बाद होगी। 22 साल पुराने केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज हुई। कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई को नोटिस दिया है। उल्लेखनीय है कि सीबीआई द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटिशन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें भाजपा तथा संघ के वरिष्ठ नेताओं को विवादित ढांचा तोड़ने की साजिश में शामिल होने के आरोप से बरी कर दिया गया था। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस नोटिस से पार्टी में बैचेनी है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और अरूण जेटली आगे की कार्यवाही के लिए मुख्य आरोपी लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से मुलाकात कर रहे हैं। सीबीआई की याचिका के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फैजाबाद के निवासी हाजी मोहम्मद अहमद की तरफ से दायर याचिका पर भी सुनवाई की। इस याचिका में केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के मद्देनजर सीबीआई की निष्पक्षता पर भी आशंका जताई गई है। याचिका में कहा गया है कि जिन पर क्रिमिनल ट्रायल चला है, उनमें से एक कैबिनेट मिनिस्टर (उमा भारती), एक राज्यपाल (कल्याण सिंह) बन चुके हैं। हाजी मोहम्मद अहमद रामजन्म भूमि विवाद से 45 वर्षो से जुड़े हुए हैं और वहां मस्जिद बनाने के पैरवी कर रहे हैं।
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
याचिकाकर्ता ने 2010 में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने उस समय लाल कृष्ण आडवाणी को बाबरी मस्जिद तोड़ने के आरोपों से बरी कर दिया था। इसके बाद फैजाबाद के रहने वाले हाजी महमूद अहमद ने इस फैसले का विरोध किया और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हाजी महमूद इस मामले से CBI की साख पर भी सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि, CBI ने पूरे मामले में लालकृष्ण आडवाणी को बचाने की कोशिश की।
21 आरोपी हुए थे बरी
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में 21 आरोपियों को साजिश के आरोप से मुक्त कर दिया था। वहीं CBI ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलवी दायर की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह डिसीजन 20 मई 2012 को आया था, लेकिन CBI ने 8 महीने बाद इसके अगेंस्ट सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।