अबोहर। हिम प्रदेश के हृदयस्थल कहे जाने वाले शिमला में कुफरी मार्ग पर नवनिर्मित स्वामीनारायण मंदिर के द्वार मूर्ति प्रतिष्ठा महोत्सव के बाद अब जनसाधारण के लिए खोल दिए गए हैं। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था द्वारा स्थापित अक्षरधाम के कोठारी मुनिवत्सल स्वामी ने जानकारी देते हुए बताया कि शिमला में 2009 में संस्था के संयोजक ईश्वरचरण स्वामी ने सत्संग का बीजरोपित किया और 10 अप्रैल 2015 को डा. स्वामी व त्यागवल्लभ स्वामी जी ने मंदिर के लिए शिलान्यास किया। अब वहां मूर्ति प्रतिष्ठा संस्था के वर्तमान अध्यात्मिक मुखिया महंत स्वामी जी महाराज के कर कमलों से संपन्न हुई।
जयतीर्थ स्वामी ने बताया कि दो दिवसीय समारोह को अपनी उपस्थिति से सुशोभित करने वालों में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री किशन कपूर, शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के अलावा स्वामी गंगादास उदासीन सहित कई विद्वान संत शामिल थे।
महापूजा के बाद इस आयोजन की सराहना करते हुए हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना था कि भौतिकतावाद के इस युग में हम मानवता, मूल्यों और संस्कृति को कहीें न कहीं पीछे छोड़ रहे हैं। अंत में प्रत्येक मनुष्य को अहसास अवश्य होता है कि उसने वास्तव में जो कुछ हासिल किया उससे कहीं अधिक मूल्यवान खोया है। उनका यह भी कहना था कि हिमाचल देवी-देवताओं की भूमि है और राज्य के लोग संतों व ऋषियों पर गहन आस्था रखते हैं। संत हमारी संस्कृति व धर्म के ध्वजवाहक हैं जो समाज में सौहार्द लाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।
वीरभद्र सिंह व प्रतिभा सिंह ने अपने विचारों की अभिव्यक्त् िकरते हुए कहा कि दिल्ली, गांधीनगर व अमेरिका में अक्षरधाम तथा विभिन्न देशों में लगभग 1200 मंदिर स्थापित करने वाले संतों का आगमन और हिमाचल की राजधानी में मंदिर का निर्माण नि:संदेह शिमला आने वाले पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा।
उल्लेखनीय है कि मंदिर में भगवान स्वामीनारायण, अक्षरब्रह्मा श्री गुणातीतानंद स्वामी, श्री राधाकृष्ण, श्री हनुमान जी, श्री गणेश जी एवं गुरू परंपरा की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा महंत स्वामी जी द्वारा आरती के साथ की गई। इन मूर्तियों की विशेषता यह भी है कि मंदिर के लिए शिलाओं का पूजन करने के अलावा देहावसान से मात्र 3 दिन पूर्व अगस्त 2016 में विश्ववंदनीय संत प्रमुखस्वामी जी महाराज ने तपोभूमि सारंगपुर में इनका पूजन किया था। जिस प्रकार महंत स्वामी जी महाराज के आगमन पर स्थानीय लोगों ने उनका अभिनंदन किया, उससे उनके हर्षोल्लास स्पष्ट प्रमाण मिलता है।