बीकानेर । राजस्थान हार्ड कोर्ट की ओर से संथारा प्रथा पर रोक लगाने, संथारा को आई.पी.सी.की धारा 306 के तहत गैर कानूनी बताने के फैसले का बीकानेर में चातुर्मास कर रहे विभिन्न जैन समाज के मुनियों व साध्वियों व श्रावक श्राविकाओं ने विरोध किया है। उनकी प्रेरणा व आशीर्वाद से जैन महासभा के तत्वाववधान में बीकानेर में अपने आप में ऐतिहासिक मौन जुलूस निकाला गया। जुलूस में बीकानेर नगर के साथ आस पास के कस्बों व गांवों के लोगो, अजैनियों व जमातुल हिन्द की स्थानीय शाखा के नेतृत्व में कई मुसलमानों ने भी हिस्सा लिया।
बीकानेर में चातुर्मास कर रहे मूर्ति पूजक जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ, तपागच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ, अमूर्ति पूजक साधुमार्गी जैन संघ, श्री अखिल भाारतवर्षीय साधुमार्गी शांत-क्रांति जैन श्रावक संघ तथा तेरापंथ धर्म के मुनि व साध्वीवृंद नियमित मौन रैली में भागीदारी की प्रेरणा दे रहे थे। सोमवार को उनकी प्रेरणा से चातुर्मासिक प्रवचन के बाद बीकानेर शहर के विभिन्न जैन बहुल्य मोहल्लों, गंगाशहर- भीनासर से पंचरंगी जैन ध्वज लिए हुए जैन श्रावक-श्राविकाओं का रैला महर्षि दयानंद मार्ग स्थित दिगम्बर जैन नसियाजी के पास जमा हो गया। श्रावक-श्राविकाओं का नेतृत्व करते हुए पहुंचे मुनि मनोज्ञ सागर व नयज्ञ सागर मौन रहने का पचखान यानि संकल्प दिलवाया। मुनिश्री श्रावक श्राविकाओं के रैले को सम्बोधित करते हुए कहा कि जैन धर्म के सिद्धान्त व नियम सत व शाश्वत है। मानव मात्र के लिए कल्याणकारी सिद्धान्तों को तीर्थंकरों, सिद्धाचार्यों व आचार्यों ने गहरे चिंतन-मनन व आत्म साधना के साथ बनाया है। जैन धर्म के सिद्धान्त व नियम वर्तमान व भविष्य में प्रासंगिक रहेंगे। जैन धर्म के सिद्धान्तों व नियमों की पालना करने से परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व में शांति की स्थापना संभव है। जाति पाति का कोई भेद नहीं करने वाला जैन धर्म विराट है। जैन धर्म में कोई साधना, तपस्या को थोपा नहीं जाता। तपस्याएं आत्मबल पर की जाती है। जैन धर्म ने हिंसा, असत्य, किसी के मन में पीड़ा पहुंचाने जैसी क्रियाओं व विधियों व साधनाओं का समर्थन नहीं दिया है। लोकतंत्र व भारतीय संविधान में किसी की भी अनादिकाल से चल रही धार्मिक, सांस्कृतिक भावना को ठेस पहुंचने का हक नहीं हैं।
मुनिवृंद के सान्निध्य में श्राविकाएं लहरिया, लाल कसुम्बल मोठड़ी की साड़िया, श्रावक सफेद वस्त्रों में हाथ में तख्तियां व पंचरंगी जैन ध्वज लिए, व कुछ जैन आगम को लिए हुए कतारबद्ध अनुशासन में चल रहे थे। रैली का एक सिरा दिगम्बर जैन नसियाजी के पास था तो दूसरा सिरा कलक्टरी पर था।
मरोठी सेठिया मोहल्ले के नवकार भवन में श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी शांत क्रांति जैन श्रावक संघ के पारस मुनि व अभिनंदन मुनि ने रैली में जाने से पूर्व श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि काम,क्रोध, लोभ व मोह माया (आसक्ति) रहित होने के कारण संथारा शांत व सहज भाव से देह की आसक्ति को छोड़कर, मोह माया का त्याग कर आने वाली मृत्यु का सहज निमंत्रण है।
रैला मिला- सुगनजी महाराज के उपासरे, लालकोठी, तपागच्छीय पौषधशाला, मरेाठी सेठिया मोहल्ले के नवंकार भवन, सेठिया धार्मिक कोटड़ी व मालू कोटड़ी से श्रावक-श्राविकाओं का विभिन्न मार्गों से पहुंचकर रांगड़ी चौक में एक बड़े कारवां के रूप में बन गया। कारवां में कुछ दूर जैन श्वेताम्बर तपागच्छ संघ की साध्वीवृंद भी शामिल हुई। रांगड़ी चौक क्षेत्र के कारवां का नेतृत्व मुनि मनोज्ञ सागर व नयज्ञ सागर ने किया।
नियमित प्रवचन- रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में आचार्य हरिभद्र सूरिश्वर द्वारा रचित धर्म बिन्दु ग्रंथ व पदमय मयणा रेहा कथा पर प्रवचन करते हुए मुनिश्री मनोज्ञ सागर ने कहा काम,का्रेध, लोभ व मोह के कारण किसी भी व्यक्ति की बुद्धि में मलीनता आ सकती है। मलीनता आने पर व्यक्ति रिश्ते नाते, परिवार व समाज को भूलकर क्षणिक आवेश में अत्यन्त धृणित कार्य कर लेता है। उसके द्वारा किए गए घृणित कार्य का प्रभाव उसके परिजनों व समाज के अन्य लोगों को भी बेजह कष्ट झेलना पड़ता है। मनुष्य को चाहिए कि वह संयम पथ पर चलते हुए काम,क्रोध, लोभ व मोह पर नियंत्रण करने का प्रयास करना चाहिए। मुनिश्री के सान्निध्य में आठ दिन की तपस्या करने वाल मोहित डागा व जैसलमेर के ब्रह्मसर दादाबाड़ी के ट्रस्टी पारसमल घीया का अभिनंदन किया गया।
शिवबाड़ी में मेला आज- मुनिश्री मनोज्ञ सागर व नयज्ञ सागर मंगलवार को सुबह श्रावक-श्राविकाओं के साथ शोभायात्रा के रूप में शिवबाड़ी जाएंगे। शिवबाड़ी में मुनिवृंद के सान्निध्य में भगवान पार्श्वनाथ की संगीतमय पूजा, प्रसार का आयोजन होगा तथा शेाभायात्रा निकलेगी। बीकानेर से शिवबाड़ी तक के मार्ग में अनेक स्थानों पर भक्तामर व अन्य धार्मिक कार्यक्रम होंगे।
मरोठी सेठिया मोहल्ले के नवंकार भवन में पारस मुनि ने नियमित प्रवचन में सोमवार को कहा कि काल चक्र को जैन आगमों में अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी दो भागों में विभक्त किया गया। अवसर्पिणी काल में व्यक्ति की आयु, कद व शक्ति घटती है, वहीं उत्सर्पिणी चक्र में आयु, उम्र व शक्ति बढ़ती है। यह काल का 5 वां आरा है। मनुष्य को अवन्नति से बचने के लिए धर्म साधना कर देवत्व को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।