नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर आज लोकसभा ने अपनी मूहर लगा दी। भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध कर रही कांग्रेस के साथ-साथ बीजद, टीआरएस, तृणमूल कांग्रेस, सपा सहित कई दलों ने सदन से वाकआउट किया। विपक्ष के साथ सहयोगी दलों के विरोध को देखते हुए केन्द्र सरकार ने आज विधेयक में 11 संशोधन भी पेश किए, जो भारी बहुमत से सदन से पारित हुआ। सोमवार तक विधेयक को विरोध कर रही अन्नाद्रमुक ने आज बिल के पक्ष में मतदान किया, जबकि राजग की सहयोगी शिवसेना ने सदन में मौजूद रहने के बाद भी मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लिया। ग्रामीण विकास मंत्री विरेन्द्र सिंह ने विपक्षी आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक की आत्मा निकाल नहीं रही, बल्कि डाल रही है। यह किए हैं संशोधन केन्द्र सरकार ने विधेयक में संशोधनों के जरिए सोशल इंफ्रास्ट्रकचर को मंजूरी न लेने वाले सेक्टर को बाहर करने, सिर्फ सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए ही जमीन लेने, राष्टीय राजमार्ग, रेललाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का ही अधिग्रहण करने, किसानों को जिले में शिकायत करने, विस्थापित परिवारों में से एक को नौकरी देने के साथ इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमी अधिग्रहण करने और बंजर जमीनों का अलग से रिकॉर्ड रखने का प्रस्ताव पेश किया गया। सरकार ने संशोधनों द्वारा किसानों को उनके जमीन का मुआवजा उसी समय उपलब्ध कराने का प्रस्ताव भी सदन में पेश किया, जिस समय से उनकी जमीन अधिग्रहित की जाएगी साथ ही सरकार ने जमीन अधिग्रहित करने के पांच साल तक अगर उस पर काम नहीं किया गया तो वह जमीन किसान को वापस देने का संशोधन भी पेश किया। राज्यसभा में यह मुश्किलें हालांकि लोकसभा से विधेयक पर मूहर लगने के बाद भी इसे राज्यसभा में पेश करने को लेकर संशय बरकरार है। केन्द्र सरकार को राज्यसभा में लोकसभा से पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश करने से पहले वहां लंबित पड़े पुराने विधेयक को वापिस लेना होगा। लेकिन भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर विपक्षी एकजुटता को देखते हुए ऐसा होना मुश्किल लग रहा है। अगर सरकार राज्यसभा में विधेयक को वापस लेने का प्रस्ताव रखती है और यदि मतदान की नौबत आई तो सरकार हार जाएगी। ऐसे में सरकार के पास संसद से विधेयक को पारित करवाने के लिए विकल्प काफी कम है। केन्द्र सरकार को संसद का ’वाइंट सेशन बुलाने के लिए यह जरूरी है कि राज्यसभा भूमि अधिग्रहण बिल को पास न करे, मगर यह भी संभव नहीं हो पा रहा है। राज्यसभा में जो भूमि अधिग्रहण विधेयक है, यदि सरकार उसे वापिस नहीं ले पाती है, तो वह छह महीने में खुद-ब-खुद निष्क्रिय माना जाएगा। हालांकि राजग सरकार द्वारा विधेयक में नौ संशोधन किए जाने के बाद सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और वीरेंद्र सिंह ने बिल को लेकर विपक्षी नेताओं से बातचीत भी की है। इससे पहले आज लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष ने 52 संशोधन पेश किए, जो भारी बहुमत से खारिज कर दिए गए। जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों को मंजूरी वाले प्रस्ताव भी खारिज हो गया, इस प्रस्ताव के पक्ष में 98 और विपक्ष में 299 मत पड़े।