बीकानेर । किसी संसारी व्यक्ति का संन्यास असल में पुर्नजन्म होता है, जिसमें व्यक्ति अपने पूर्वजन्म यानी वानप्रस्थ को देख-सुन सकता है। योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ ने संसार में वानप्रस्थ बाबूलाल लखारा के रूप में आदर्श शिक्षक बन कर गुजारा और बाद में संन्यास ग्रहण कर जीवन से विरक्त हो गए। उन्होंने अपने नाम के साथ सब कुछ छोड़ दिया और जन-जन की सेवा का व्रत ले लिया।
उक्त उद्गार शिविरा के पूर्व संपादक वरिष्ठ कवि भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ ने भीनासर स्थित श्री नोबिना शिक्षा संस्थान माध्यमिक विद्यालय के परिसर में कवि-कहानीकार जगदीश प्रसाद शर्मा ‘उज्ज्वल’ की जीवनी परक पुस्तक योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ के लोकार्पण समारोह कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त करते हुए कहा कि परमयोगी प्रहलादनाथ जी जैसे दुर्लभ संत-महात्मा भी संसार में हैं जो निमित्त बन कर अपनी प्रशंसा सुनना पाप समझते हैं। यह गहरे मर्म की बात है कि निमित्त बन कर अभिनंदन कराने से पुण्य क्षीण होते हैं। उन्होंने कहा कि योगीराज “विज्ञानी’ ने समाज में पहले भी असाधारण काम किया और अब भी वे असाधारण काम कर रहे हैं।
कवि-कहानीकार जगदीश प्रसाद शर्मा ‘उज्ज्वल’ की पुस्तक योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ का लोकार्पण वरिष्ठ कवि भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’, महापौर नारायण चौपड़ा, उपनिदेशक ओमप्रकाश सारस्वत, साहित्यकार बुलाकी शर्मा, कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया, सूरजप्रकाश लखारा, बसंतसिंह मान एवं नरपतसिंह सांखला ने किया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए बीकानेर नगर निगम के महापौर नारायण चौपड़ा ने कहा कि संसार रूपी कीचड़ में प्रहलादनाथ जी महाराज कमल की भाति रहे। उनके प्रेरणादायी कार्यों में गौ-सेवा और पीड़ित मानवता का तन-मन-धन से कल्याण-भावना समाज को दिशा देने वाली है। चौपड़ा ने कहा कि प्रहलादनाथ जी महाराज ने संन्यास से पहले और संन्यास के बाद भी अपना जीवन सेवा को समर्पित कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। ऐसे पहुंचे हुए संत-महात्मा अब संसार में बहुत कम रह गए हैं जो निस्वार्थ भावना से सेवा को ही जीवन का उद्देश्य समझते हों।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपनिदेशक शिक्षा विभाग एवं साहित्यकार ओमप्रकाश सारस्वत ने कहा कि धर्म और विज्ञान का मेल ही क्रांति की ऐसी गंगा लाएगा जो सामाजिक परिवर्तन को मार्ग देगा, वहीं हमारे संस्कारों और परंपरा का उत्थान करेगा। उन्होंने कहा कि संसार में संतों का जन्म ऐसे ही नहीं होता। इतिहास गवाह है कि संत सदा अवतारी होते हैं। संतों के आशीर्वाद से ही संत होते हैं और योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज अवतारी हैं। महाराज जी का संदेश है कि कर्मों में युक्तायुक्त सफलता हो, वे ही सफल होते हैं।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार बुलाकी शर्मा ने पुस्तक के बारे में बोलते हुए कहा कि जगदीश प्रसाद शर्मा ‘उज्ज्वल’ की जीवन परक पुस्तक योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ पढ़ते हुए मुझे विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित आवारा मसीहा का स्मरण हो आया। जीवनी लेखन बहुत श्रमसाध्य कार्य है फिर भी लेखक उज्ज्वल ने अथक परिश्रम कर लंबे अध्ययन और ममन के बाद इसे लिखा है जो निश्चय ही एक उपलब्धिमूलक कार्य है।
योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ पुस्तक के लोकार्पण-कार्यक्रम के आरंभ में सरस्वती पूजन और विद्यालय की बालिकाओं द्वारा सरस्वती वंदना की गई। श्री नोबिना शिक्षा संस्थान माध्यमिक विद्यालय की बालिकाओं ने अतिथियों के स्वागत में राजस्थानी स्वागत-गान प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में स्वागताध्यक्ष के रूप में बोलते हुए कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कहा कि मेरे लिए व्यक्तिशः परम हर्ष और सौभाग्य का विषय है कि पुस्तक लिखने वाले लेखक और जिस पर पुस्तक लिखी गई है दोनों मेरे अध्ययन काल के गुरु रहे हैं। इसके साथ ही सौभाग्य यह है कि कार्यक्रम के अध्यक्षय भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ भी मेरे ही नहीं हम गुरुओं के गुरु रहे हैं जिसने बीकानेर की तीन पीढ़ियों ने शिक्षा और संस्कार ग्रहण किए हैं। डॉ. दइया ने कहा कि गुरु का स्मरण मात्र ही कल्याणकारी होता है ऐसे में यह जीवन तो एक गुरु के शब्दों में दूसरे गुरु के कार्यों का प्रसाद है जिसे ग्रहण कर जीवन को आलोकित किया जा सकता है।
इस अवसर पर संस्था द्वारा महाराजजी की धर्मपत्नी श्रीमती ललिता देवी, पुस्तक के लेखक जगदीश प्रसाद शर्मा उज्ज्वल, पुस्तक के प्रकाशक से जुड़े भंवरलाल सियाग और मंचस्थ समस्त अतिथियों को योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ की पुस्तकों का एक-एक सेट, स्मृति चिह्न, श्रीफल, शाफा, शॉल, माला प्रदान कर सम्मानित किया गया।
पुस्तक परिचय साहित्यकार नरपतसिंह सांखला ने लेखक परिचय के साथ-साथ पुस्तक में लिखी गई भूमिका के प्रमुख अंशों का वाचन करते हुए कहा कि इस पुस्तक में इसका मर्म देखा जा सकता है कि आधुनिक समाज में नैतिकता सांस्कृतिक मूल्य आदि के पतन को कैसे किस प्रकार पुनर्जीवित कर सकते हैं। असल में कवि उज्ज्वल ने सेवा का अर्थ पीड़ित मानव सेवा व गौ सेवा का अर्थ भी सरल सहज भाषा व उदाहरणों के माध्यम से पाठकों के समक्ष इस जीवनी साहित्य की पुस्तक में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि पुस्तक में जगह-जगह अमृत विंदु, आत्म चिंतन, आत्मविश्वास, सद्कर्म, मानव धर्म, संतवृति, सद्कार्य, तपस्या, त्याग, योग समाधि साधना आदि बिंदुओं को प्रेरक रूप में ग्रहण किया जा सकता है।
कार्यक्रम समन्वय सूरजप्रकाश लखारा ने कहा कि मेरे पिता योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज “विज्ञानी’ जिन पर यह पुस्तक लिखी गई है जब उन्हें ज्ञात करवाया गया है कि ऐसा कार्यक्रम है तो उन्होंने कहा इसमें मेरा क्या काम है। वे फलौदी प्रवास पर है और कथा में खोये हैं जब हम उनके प्रेरक जीवन को इन शब्दों में देखते हैं तो वे साकार होते हैं। यह मेरे पिता के जीवन की लगन थी कि वे व्यक्ति और पिता के रूप में कार्य पूरा कर देश और समाज के लिए अनूठा कार्य कर एक मिशाल बने और उन्होंने यह सब कर दिखाय है।
संस्था के सचिव नागेन्द्र लखारा ने बताया आयोजन और पुस्तक प्रकाश की पृष्ठभूमि को उजागर किया तथा विद्यालय के प्रधानाचार्य बसंतसिंह मान ने बताया कि यह विद्यालय योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज के सोपे हुए बीज का वृक्ष है जिसमें बालकों को शिक्षा और संस्कार देकर देश के योग्य नागरिक बनाने का महाराज जी का सपना साकार किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
कवि-नाटककार हरीश बी. शर्मा पुस्तक की पृष्ठभूमि में भीनासर और नाथ सम्प्रदाय की अनेक बातों को साझा करते हुए कहा कि नाम की बड़ी महिमा है और नाम सुमरिन में ही संतों ने कल्याण को साधा है। योगी श्री 108 प्रहलादनाथ जी महाराज की प्रेरक जीवनी हमें जीवन के अनेक पाठ पढ़ाती है।
कवयित्री-कहानीकार उषा किरन सोनी ने अपनी सभी पुस्तकों का सेट विद्यालय पुस्तकालय हेतु भेंट किया तथा कार्यक्रम आयोजक संस्था द्वारा उपस्थित सभी श्रोताओं को पुस्तक की प्रति भेंट स्वरूप प्रदान की गई।
कार्यक्रम में प्रो. अजय जोशी, सरदार अली परिहार, आसकरण लखारा, उषा किरण सोनी, मोहन थानवी, योगेंद्र भाटी, संदीप छलाणी, मयुनीद्दीन नाचीज, भंवरलाल सियाग, रजनीश भारद्वाज, प्रदीप कच्छावाह, कैलाश लखारा, डॉ. नृसिंह बिन्नाणी, गौरीशंकर, राजेन्द्र मिन्नी, खैराज, लक्ष्मणसिंह, विजयश्री लखारा, उर्मिला लखारा, शिखर चंद सेठिया, कन्हैयालाल लखारा, जेठाराम गहलोत, मधुरिमा सिंह, जयचंद लाल सोनी, मुरलीधर सोलंकी, ललित कुमार लखारा, मूलचंद गहलोत, रतनलाल उपाध्याय आदि उपस्थित रहे। मंच संचालन कवि-नाटककार हरीश बी. शर्मा ने किया तथा आभार संस्था सचिव नागेन्द्र लखारा ने व्यक्त किया।