जयपुर। सुप्रीम कोर्ट में आज एक बार फिर से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सुनवाई की गई। हालांकि आज भी वही हुआ, जो बरसों से होता चला आ रहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने अब अगली तारीख मुकर्रर कर दी है। इस मामले में कोर्ट अब 29 जनवरी को सुनवाई करेगा। दूसरी ओर, यह भी उम्मीद की जा रही है कि अगली सुनवाई होने से पहले जजों की नई बैैंच गठित की जा सकती है और संभवतया नई बैैंच ही मामले की अगली सुनवाई करेगी।
बहरहाल, इससे इतर इस मामले को लेकर अब हर किसी के जहन में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर इतने साल बीत जाने के बावजूद इस मसले का कोई समाधान या फिर कोर्ट का फैसला क्यों नहीं आ पा रहा है। हालांकि मामले और इसके इ?तिहास पर नजर डाली जाए तो समझा जा सकता है कि मामला कितना पैचीदा है और आखिर ये पूर मामला है क्या, जिस पर निर्णय करने में कोर्ट को बरसों लग गए और अभी भी तारीख दर तारीख का सिलसिला बदस्तूर जारी है। अयोध्या विवाद ने कई दशकों तक देश की राजनीति को प्रभावित किया है, लेकिन ये विवाद कोई एक दिन में उत्पन्न नहीं हुआ था। ऐसे में जानते हैं कि आखिर क्या हुआ था बाबरी विध्वंस से पहले? उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक, दावा किया जाता है कि मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उसके सम्मान में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। हिंदुओं का मत है कि मीर बाकी ने बाबर के लिए इस मस्जिद का निर्माण एक मंदिर को तोड़कर किया था, जिसे बाद में बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा।
बाबरी मस्जिद निर्माण के लिए मीर बाकी ने जिस मंदिर को तोड़ा था, वह कोई आम मंदिर नहीं, बल्कि राम जन्मभूमि पर बना मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का मंदिर था और इसी को लेकर पूरे विवाद ने जन्म लिया और सैकड़ों साल बीत जाने के बावजूद मामला अभी तक भी कोर्ट की तारीखों में उलझा हुआ है। इसी के चलते आज कोर्ट ने बाबरनामा समेत कई ग्रंथों को भी कोर्ट में मंगवाया है। ऐसे में अब सबकी नजर 29 जनवरी को होने वाली सुनवाई पर टिकी है।
दरअसल, यह विवाद 1949 का नहीं है, जब बाबरी ढांचे के गुम्बद तले कुछ लोगों ने मूर्ति स्थापित कर दी थी। यह विवाद 1992 का भी नहीं है, जब भारी तादाद में भीड़ ने विव?ादित ढांचा ध्वस्त कर दिया था। वस्तुत: यह विवाद अब से करीब 491 वर्ष पूर्व यानि 1528 ईस्वी का है, जब एक मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया गया था। ऐसे में जन्मभूमि को लेकर फैसला वस्तुत: 1528 की घटना का होना है, न कि 1949 या 1992 की घटना को लेकर। 1949 और 1992 की घटनाएं 1528 की घटना से उत्पन्न हुए शताब्दियों के संघर्ष के बीच घटी तमाम घटनाओं के बीच की मात्र दो घटनाएं हैं, क्योंकि विवाद अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और फैसला कोर्ट को करना है।(PB)