उदयपुर । स्वर्ग रंगमंडल द्वारा उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में आयोजित भारत लोकरंग महोत्सव के त्रिदिवसीय आयोजन के समापन पर शुक्रवार को उदयपुर के सुप्रसिद्ध लोककलाविज्ञ डॉ. महेन्द्र भानावत को उनके दीर्घकालीन भारतीय लोककला संस्कृतिपरक अवदान के फलस्वरूप उन्हें ‘लोककला रत्न सम्मान – 2015’ से अलंकृत किया गया। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र में आयोजित देश के विविध प्रांतों के लोक कलाकारों के बीच डॉ. भानावत को यह सम्मान आईआईआईटी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फारमेंशन टैक्नोलॉजी) के निदेशक डॉ. सोमनाथ बिस्वास ने प्रदान किया।
इस अवसर पर डॉ. भानावत ने कहा कि आजादी के बाद पूरे देश के विविध अंचलों की लोककला संस्कृति के उन्ययन विकास और संरक्षण की दिशा में जो कार्य हुआ उसके समग्र मुल्यांकन का समय आ गया है। आवश्यकता इस बात की है कि लोककला संस्कृति के विविध स्वरूपों को सभी कक्षाओं के पाठ्यक्रम से जोड़ा जाए और प्रत्येक प्रांत में लोककला विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएं ताकि हम अपने भारतीयता की पारंपरिक धरोहर की रक्षा करते हुए उसे आधुनिक संदर्भ और समय के साथ मूल्यांकित कर सकें।
रंगमंडल के सचिव अतुल यदुवंशी ने बताया कि पिछले साठ वर्षों से डॉ. भानावत ने अपनी अनवरत साधना से कला संस्कृति की कई विधाओं को ऋषि तुल्य श्रीहीन होने से बचाया है। उसी के परिणामस्वरूप देश-विदेश के अनेक छात्रों ने उन्हें शोध का विषय बनाकर गंभीर कार्य किया है। इस अवसर पर प्रसिद्ध गीतकार किशन दाधीच का भी सम्मान किया गया।
सम्मान के इस क्रम में इलाहाबाद के डॉ. श्लेष गौतम को लोक कलाओं के प्रति समर्पण, संवेदना और दीर्घकालीन लोक तत्वों से ओत प्रोत लोक साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों लिए ‘लोक कलाविद् सम्मान’, फोक आर्ट अम्बेसडर अवार्ड इलाहाबाद के डॉ. सोमनाथ बिस्वास एवं छत्तीसगढ़ के डॉ. अनूप रंजन पाण्डेय को जबकि फोक आर्ट मास्टर अवार्ड बाउल गायन हेतु पश्चिम बंगाल की सुश्री रीना दास को, लोकनृत्य रसिया हेतु हरियाणा की सुश्री कविता चन्देल तथा बिदेसिया लोकनाट्यशैली हेतु बेगुसराय बिहार के प्रवीण कुमार गुंजन को प्रदान किया गया।
उल्लेखनीय है कि संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित इस त्रिदिवसीय महोत्सव में देश के विविध प्रांतों के लोकनृत्य कलाकारों ने प्रतिदिन संध्या को उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी इन्द्रधनुषी रंगावलियां प्रस्तुत की। स्वर्ग रंगमंडल पिछले अनेक वर्षों से भारतीय संस्कृति कला एवं साहित्य के उन्ययन विकास एवं संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। इस हेतु यह रंगमंडल उत्तरप्रदेश के अलावा हरियाणा, दिल्ली, बिहार, राजस्थान, गोवा, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं उत्तराखंड आदि में अपने आयोजन कर चुका है।