शरद केवलिया / सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म तलवंडी (अब पाकिस्तान) में 15 अप्रैल, 1469 को हुआ। पूरे देश में गुरु नानक का जन्मदिन प्रकाश दिवस के रूप में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
गुरु नानक देव जी के जीवन के अनेक पहलू हैं। वे जन सामान्य की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले महान् दार्शनिक- विचारक थे, समाज सुधारक थे तथा अपनी सुमधुर सरल वाणी से जनमानस के हृदय को झंकृत कर देने वाले महान् संत कवि भी थे। उन्होंने लोगों को बेहद सरल भाषा में समझाया कि सभी इंसान एक दूसरे के भाई हैं, सब में एक ही ज्योति प्रकाशित है। ईश्वर सबका पिता है. फिर एक पिता की संतान होने के बावजूद हम छोटे-बडे़ कैसे हो सकते हैं ?
गुरु नानक का मन बचपन से ही अध्यात्म की तरफ ज्यादा था। वे सांसारिक सुख से परे रहते थे। उनकेे पिता ने उन्हें कृषि, व्यापार आदि में लगाना चाहा किन्तु उनके सारे प्रयास निष्फल सिद्ध हुए। व्यापार के निमित्त दिए हुए रूपयों को गुरु नानक ने साधुसेवा में लगा दिया और अपने पिताजी से कहा कि यही ‘सच्चा सौदा’ है।
गुरु नानक ने सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की। उन्होंने लंगर की परंपरा चलाई, जहां सभी जातियों के लोग एक साथ एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। आज भी सभी गुरुद्वारों में गुरु जी द्वारा शुरू की गई यह लंगर परंपरा कायम है। जातिगत वैमनस्य को खत्म करने के लिए गुरू जी ने संगत परंपरा शुरू की, जहां हर जाति के लोग साथ-साथ जुटते थे तथा प्रभु आराधना किया करते थे। गुरु जी ने अपनी यात्राओं के दौरान हर व्यक्ति का आतिथ्य स्वीकार किया। इस प्रकार तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरु नानक ने इन क्रांतिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे की नींव रखी, जिसमें धर्म-जाति का भेदभाव बेमानी था।
गुरु नानक देव जी की प्रमुख शिक्षाएं – गुरू नानक के शब्द ‘ गुरू ग्रन्थ साहब’ में संग्रहीत हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘जपुजी’ है। गुरू नानक कहते हैं- ईश्वर एक है, ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्रा में मौजूद है, ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता, ईमानदारी से और मेहनत करके उदरपूर्ति करनी चाहिए, बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं, सदैव प्रसन्न रहना चाहिए, मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए, सभी स्त्राी और पुरुष बराबर हैं, भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है, अहं का त्याग करके ही सत्य की पहचान हो पाती है, जो सद्गुण धारण करेगा उसे ही ईश्वर मिलेेंगे।
देश- विदेश की यात्राएं करने के बाद गुरु नानक अपने जीवन के अंतिम चरण में परिवार के साथ करतारपुर में बस गए थे। वहीं प्रभु का भजन करते हुए वे ब्रह्म लीन हो गये। गुरू नानक देव के आगमन से संसार की धुंध मिट गई और चारों ओर प्रकाश हो गया।