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IAS अफसरों को दी जा सकती है बिजली कंपनियों की कमान

जोधपुर। सरकार निरन्तर घाटे में चल रही बिजली कंपनियों के ढांचे में फिर से बदलाव करने पर विचार कर रही है। हालांकि अधिकारिक तौर पर तो ऐसा कहीं से कोई बयान जारी नहीं हुआ है लेकिन पिछले कुछेक दिनों से ऊर्जा विभाग में जो सुगबुगाहट चल रही है उसके संकेतों को ही यदि समझे तो सरकार बिजली कंपनियों को लेकर गहन मंथन में जुटी है और बड़े बदलाव की तैयारी में है। संभवतया बिजली कंपनियों की कमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को भी सौंपी जा सकती है। गौरतलब है कि राजस्थान राज्य विद्युत बोर्ड को भंग करने के पीछे सरकार की मंशा यही थी कि बिजली महकमे का घाटा कम होगा, लेकिन यह विडम्बना ही है कि घाटा बजाय घटने के कई गुना बढ़ गया और यही नहीं उपभोक्ताओं का संतुष्टि स्तर पर भी काफी गिर गया है। अब सरकार के पास बिजली कंपनियों की कमान भारतीय प्रशासनिक अधिकारी को सौंपे जाने का कोई सुझाव आया है और इसे मजबूत विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। सरकार उसी पर ही मंथन कर रही है। प्रयोगात्मक तौर पर ही सही सरकार यह निर्णय ले सकती है। पिछले पांच दिनों से प्रदेश की तीनों बिजली कंपनियों में प्रबंध निदेशक के पदों को नहीं भरे जाने को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। इस विकल्प को अमल में लाने की मजबूत वजह यह भी है कि अगले दो महीनों में ही बिजली कंपनियों में पीपीपी मॉडल अस्तित्व में आ जाएगा। इस रूप में एक बडे हिस्से पर से कंपनी के प्रबंध निदेशक का अधिकार हट जाएगा। जब यह दृश्य बनने ही वाला है तो फिर प्रबंध निदेशक की नियुक्ति क्यो? सरकार इसी का जवाब तलाशने में समय ले रही है। साथ ही यह आशंका भी प्रबल है कि यदि इन कंपनियों में आईएएस को कमान दी जाती है तो हो सकता है इंजीनियर विरोध पर उतर आए और उधर पीपीपी मॉडल को लेकर श्रमिक संघ पहले से ही सड़कों पर है। यदि ऐसी स्थिति बन जाती है तो सरकार इनसे किस तरह निबट सकती है। इस पर भी विचार हो रहा है। समझा यह भी जा रहा है कि बहुत जल्दी ही पंचायत चुनाव भी सम्पन्न हो जाएंगे और उसके बाद अगले पौने चार साल तक कोई चुनाव नहीं होने वाले हैं इस लिहाज से यदि कहीं से कोई विरोध उपजेगा भी तो सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। इस लिहाज से भी इस बिजली कंपनियों के ढांचे में बदलाव की खबरों को बल मिल रहा है। उल्लेखनीय है कि फिलहाल बिजली कंपनियों में प्रबंध निदेशक के पद पर सीनियर इंजीनियर की ही नियुक्ति होती रही है। अपवाद स्वरूप अजमेर डिस्कॉम में आईएएस के हाथ में कमान रही थी। बिजली विभाग के कई विशेषज्ञों ने भी सरकार के पास यह प्रस्ताव भिजवाया है कि वितरण कंपनियों में अलग से प्रबंध निदेशक की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं है। निदेशक तकनीक के पास ही प्रबंध निदेशक के अधिकार हस्तांतरित करने व्यवस्था बनी रह सकती है। गौरतलब है कि प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के नियंत्रण में जो कोई भी विभाग संचालित हो रहे हैं उनकी स्थिति औरो की अपेक्षा बेहतर है। अब देखों सरकार क्या निर्णय लेती है।