राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए दिल्ली में धरना-प्रदर्शन
राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए दिल्ली में धरना-प्रदर्शन
राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए दिल्ली में धरना-प्रदर्शन

नई दिल्ली । राजस्थानी भाषा को संविधन की आठवीं अनुसूची में शमिल करने की मांग को लेकर बुधवार को यहां जतंर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा। जिसमें राजस्थान के विभिन्न जिलों समेत कोलकाता, गुवाहाटी, पूना, बेंगलौर, मुंबई और नेपाल से बड़ी संख्या में राजस्थानी भाषा-भाषी लोगों के भाग लेने का दावा किया गया है। राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष केसी मालू ने आज यहां बताया कि पिछले कई वर्षों से राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर संघर्ष चल रहा है। लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा सैद्धांतिक सहमति देने और तमाम सरकारी आश्वासनों के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। मालू ने बताया कि राजस्थान विधानसभा की ओर से भी 25 अगस्त 2003 को संकल्प पारित कर इस बारे में केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। लेकिन अब तक मामला ठंडे बस्ते में ही है। ऐसे में इस आंदोलन को गति देने के लिए इस बार राजधानी दिल्ली में धरने-प्रदर्शन की जरुरत आन पड़ी है। केसी मालू ने दावा किया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के मामले में हो रही लगातार देरी से प्रदेश के युवाओं के रोजगार के अवसरों पर भी असर पड़ रहा है। आज युवाओं को देश की 22 विभिन्न भाषाओं के माध्यम से आईएएस की परीक्षा देने का अवसर मिलता है। यदि राजस्थानी भाषा भी इस सूची में शामिल होती है।तो प्रदेश के युवाओं को भी राजस्थानी के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होने का मौका मिलेगा। साथ ही आरएएस सहित अन्य सरकारी नौकरियों में भी उन्हें ज्यादा अवसर मिलेंगे। इसके अलावा राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति को भी इससे बल मिलेगा। जो सबके हित में होगा। लेकिन विडम्बना यह है कि प्राथमिक स्तर की शिक्षा में राज्य के बच्चे को तीसरी भाषा के रुप में राजस्थानी को चुनने का हक नहीं है। मालू ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग को मानने में देरी की गई तो राजस्थान बंद भी आयोजित कियाजाएगा। इस मौके पर राजस्थान संस्था संघ के अध्यक्ष एवं समिति के संयोजक सुरेश खंडेलवाल ने दावा किया कि धरने में प्रदेश के सभी भी सांसद भाग लेंगे और राजस्थानी भाषा को मान्यता देने संबंधी मुद्दे को अपना समर्थन करेंगे। खंडेलवाल ने याद दिलाया कि वर्ष 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इस मांग का समर्थन किया था।